________________
-८८]
विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा। तो वस्तु अवक्तव्य है तथापि मूलद्रव्यकी अपेक्षा नो नित्य अवश्य है।
(६) स्यात अनित्यं अवक्तव्यं च-किनी अपक्षासे द्रव्य अनित्य भी है अवक्तव्य भी है। यदि एक समयमे दोनों स्वभावोंको कहने लगे तो वस्तु अवक्तव्य है तथापि अबम्धारे बदलनेकी अपेक्षा वस्तु अनित्य अवश्य है।
(७) स्यात् नित्यं अनित्यं अवतन्यं च-किसी अपेक्षाने वस्तु नित्य भी है अनित्य भी है और अवक्तव्य भी है। यदि दानों स्वभावोंको एक साथ कहना चाहे तो वस्नु अवक्तव्य है। यदि क्रममे कहेंग नो वह नित्य भी है अनित्य भी है। इस तरह सात मंगामे नित्य अनित्य म्वभावोंका पाया जाना एकही समयमे सिद्ध किया गया।
वस्तु अनेक गुण व पर्यायांका पिंड है इसलिये एक रूप है। भिन्न २ गुणोंकी व पर्यायोंकी अपेक्षा ग्रही अनेक रूप है। एक आमका फल है वह एक पिंडकी अपेक्षा एक रूप है तब ही सर्गकी अपेक्षा पाल्प रसकी अपेक्षा ग्मरूप गंधकी अपेक्षा गंधरूप वर्णकी अपना वर्णम्प है। इसलिये आम अनेकम्प है। ये दोनों ही स्वभाव आममे एक ही समयमे है। इन दोनों स्वभावको समझानेके लिये -भी मात भंग ऊपर प्रमाण बनेंगे।
(१) स्यात् एकं (२) स्यात् अनेक (३) स्यात् अवक्तव्यं (2) स्यात् एकं अनेकं (५) स्यात् एकं अवक्तव्यं च (६) स्यात् अनेकं अवक्तव्यं च (७) म्यात् एकं अनेक अवक्तव्यं च ।। ___पदार्थ अपने स्वरूपकी अपेक्षा भावरूप है तब ही परके स्वपकी अपेक्षा अभावल्प है । एक रामचंद्र मनुप्य है उसमे रामचन्द्रका स्वरूप नो है परन्तु उसमे उसके सिवाय अन्य पदार्थोका