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तत्वज्ञानका साधन ।
{ ८५ नाम निक्षेपको जानेंगे। नय देखनेवाली है निक्षेप देखने योग्य है।
शिष्य-स्या और कोई वात ऐसी जरूरी है जिससे पढाथोंका व तत्वोका ठीक २ ज्ञान हो।
शिक्षक-नियोमे प्रसिद्ध स्याद्वाद (manysided doctrine) मिद्धात है या सप्तभंगी नय है, उसको जानना जरूरी है।
गिप्य- जरूर समझाइये।
शिक्षक-एक पदार्थमें बहुतसे आपेक्षिक स्वभाव पाए जाते है। जिनमें एक दूसरेका विरोध दीखता है, स्याद्वाद उनको भिन्न २ अपेक्षा (staurlprint ) से ठीक ठीक बता देता है। सर्व विरोध मिट जाता है । म्याद्वादका अर्थ है स्याद्--किमी अपेक्षासे (hou FOut point of view ) बाद--कहना (to des-cribe )। किसी अपेक्षासे किसी बातको जो बतावे यह स्याद्वाद है।
एक मानव पचास वर्षका है। वह अपने भीतर अनेक सम्बन्ध रखता है। वह अपने पिताका पुत्र है। अपने पुत्रका पिता है। अपने चाचाका भतीजा है, अपने मामाका भानजा है। अपने भाईंका भाई है इत्यादि । परन्तु इन सबको एक ही साथ हम शब्दोंसे कह नहीं सक्ते। जब हम एक संबंधको कहते हुए स्यात् शब्द पहले लगा देंगे तो समझनेवाला जानेगा कि इसमें और भी संबंध है।
जैसे हमने कहा स्याद पिता-किसी अपेक्षासे यह पिता है, तब सुननेवाला समझ जायगा कि इसमे और भी सम्बन्ध है।
स्याद पुत्र-किसी अपेक्षाने पुत्र है।
हराएक पदार्थ जगतमे नित्य भी है अनित्य भी है, एक रूप भी है अनेक रूप भी है; भाव रूप भी है अभावरूप भी है।