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जैनोंके तत्त्व । इनको कहा गया है कि जगतके प्राणी समझ सकें कि पुण्य कर्मका व पाप कर्मका बन्ध कैसे होता है। तथा उनका फल क्या होता है।
शिष्य-आठ कर्मोमें कौन पाप है कौन पुण्य है ?
शिक्षक-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय तथा अंतराय ये चार पातीय कर्म तो पाप रूप ही है, गंप चार अघातीयमें पाप पुण्य दो भेद है। शुभ आयु, शुभ नाम, उच्च गोत्र व सातावेदनीय पुण्य कर्म हे तथा अशुभ आयु, अशुभ नाम, नीच गोत्र तथा असाता चेदनीय पाप कर्म है।
इन नौ तत्व या पदार्थोका विशेप स्वरूप आगे वताएंगे।
शिष्य-मुझ जैन तत्वोंको जानकर बड़ा ही आनन्द हुआ । मैं गेज एक घंटा आपको दंगा। अब कल आऊंगा, आप कुछ और, विशेष बात बतावें।
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ALMARA
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