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जैनोंके तत्व।
आप समझ गए होंगे कि ये छहों द्रव्य बहुत ज़रूरी है। ये छहों ही द्रव्य जीव अजीव तत्त्रमें गर्भित हैं ।
शिष्य- हम इन दो तत्वोंको तो समझ गए हैं, अब तीसरें तत्वको समझाइये।
शिक्षक-शुभ या अशुभ कर्मों के बंधने लायक कार्मणवर्गणाओंके आनेके द्वार या कारणको तथा उन कर्म-पिडोंके आत्माके निकट आनेको आस्रव कहते है। जो कर्मपिंडके आनेके द्वार या कारण हैं उसको भावासत्र कहते हैं और कर्मपिंडके आजानेको द्रव्याखव कहते है। जैसे नाचमें छेद होनेपर पानी आजाता है, छेद पानी आनेका द्वार है। इसी तरह मावासन छेदके समान है और द्रव्याखव नावमें पानी आनेके समान है।
हमारे पास तीन कारण अच्छे या बुरे काम करनेके हैं। वे है-मन, वचन, काय । मनसे हम सोचते है, इरादा करते हैं। वचनसे बात करते हैं। शरीरसे क्रिया करते है। ___हमारा आत्मा शरीरमात्रमें फैला हुआ है। इसलिये मन या वचन या कायकी कुछ भी क्रिया जब होती है तब आत्मामें हलनचलन होजाता है, इसीको योग कहते है । जो संयोग करावे उसे योग कहते हैं। यही योग कर्मवर्गणाओंको खींच लेता है। यही कर्मपिंडीके आनेका द्वार है। इसलिये इसीको भावासव या आस्रव कहते हैं ।*
जब मन वचन कायकी क्रिया शुभ भावोंसे या इरादेसे की जाती है तब उसको शुभ योग कहते हैं और जब मन, वचन, *कायवाड्मनः कर्मयोगः ॥११६ त.सू.॥ स मास्त्रवः ॥२६॥ त.सु..
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