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विद्यार्थी जैन धर्म शिक्षा। कायकी क्रिया अशुभ भावोंसे या बुरे इरादेसे की जाती है तब उसे अशुभ योग कहते है । शुभ योगसे मुख्यतासे पुण्य कर्म बंधनेलायक कर्मपिंड आते है। अशुन योगसे पाप कर्म बंधनेलायक कर्मपिंड आते है !x
शिप्य-शुभ भाव तथा अशुम भावोंके कुछ नमूने बता दीजिये। शिक्षक-शुभ भावोंके नमूने इस तरह होसक्ते है
जीवदया, सत्य वचन बोलनेका भाव, ईमानदारीसे पैसा कमानेका भाव, संतोष भाव, ब्रह्मचर्य पालनेका भाव, देवपूजा, गुरु-सेवा, शास्त्र स्वाध्याय, संयम, तर या दानके भाव, भूमि देखकर चलनेका भाव, परोपकार भाष, स्वार्थत्याग भाव, दुख पटनेपर समतासे सहलेनेका भाव, सुख होनेपर उन्मत्त न होनेका भाव, क्षमा, विनय, सरलता, शुचिभाव, ममताकी कमी, प्राणीमात्रपर मैत्री, गुणवानोवो देखकर आनंदभाव, अपनेसे विरुद्ध जो हो उनपर माध्यस्थ भाव या क्षोभ रहित भाव ।
अशुभ भावोंके नमूने ये होसक्ते है
हिंसक भाव, असत्य वचन बोलनेका भाव, चोरीका भाव, कुशीलका भाव, तीव्र ममता, मिथ्यादेव, मिथ्यागुरु, मिथ्या शास्त्र, व मिथ्या धर्मकी भक्ति, प्रतिज्ञा या व्रत भंग करनेका भाव. दष्ट या दुर्जनताका भाव, हिसाके उपकरण बनानेका भाव, दूसरोंको संतापित या दुःखित व शोकित करनेका भाव, प्राण लेनेका भाव, रागी होकर रमणीक रूप देखनेका भाव, रागी होकर रमणीक स्त्री आदिके स्पर्शनेका भाव, शास्त्राज्ञा यथार्थ होनेपर भी निरादरका भाव, परि--
x शुभः पुण्यस्याशुभ: पापस्य ॥३॥६॥ त. सू.
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