________________
विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा आत्माके कार्मण शरीरके साथ मिलकर ठहर जाता है, इसीको वंद कहते है । बंध चार तरहका होता है-प्रकृति वंध, प्रदेश बंध, स्थिति बंध, अनुभाग बंध । यह बंध वास्तबमें मन, वचन, काय योगोंसे तथा क्रोध, मान. माया, लोभ कपायोंके कारण होता है, वधके कारणोंको भाव बंध कहते हैं। कोके बंधनेको व्य बंध कहते है । जब कर्म बंधता है तब जैसी मन, वचन, कायकी प्रवृत्ति होती है उसीके अनुसार उन कर्मपिंडोंमे जो बंधने है प्रकृति या स्वभाव पड जाता है व उसीके अनुसार कर्मपिंडोंकी संख्या नियमित होती है कि इतना कर्मपिड इस इस प्रकृतिका बंधा उसे प्रदेश बंध कहते है। ये दोनों प्रकृति और प्रदेश बंध योगोंसे होते है, कर्मपिंड तब बंधता है जब उसमें कालकी मर्यादा पड़ती है कि ये कर्मपिड इतने कालतक बंध रहेंगे व इस कालके पीछे न रहेंगे। इस कालकी मर्यादाको स्थिति बंध कहते है । कयायकी तीव्रता व मंदताके कारण कर्मोमे स्थिति अधिक या कम पड़ती है। इसी समय उन कर्मपिडोंमे तीन या मन्द फल-दानकी शक्ति पडती है उसको अनुभाग बंध कहते है। यह बंध भी कपायके अनुसार अधिक या कम होता है। स्थितिबंध और अनुभागबंध कषायोंके अनुसार होते है। ____ वास्तवमे मन, वचन, काय और कषाय ही बंधके कारण है। जैसे हम भीतमे लाल रंग पोत दें तो लाल रंगका भीतके साथ वन्ध होजायगा, उसमे भी चार भेद मालम पडेंगे । उस रंगका स्वभाव तो प्रकृति वंध है, कितना रंग चिपटा सो प्रदेश बन्ध, है, कितने कालतक चिपटा रहेगा वह स्थितिबन्ध है, उसकी