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जैनोंके तत्व। पुद्गलके सिवाय और किसीमें नहीं पाया जाता है। जैसे जीव अमूतक है वैमे आकाश, काल, धर्मास्तिकाय व अधर्मास्तिकाय भी अमूर्तीक हैं। .
शिव्य-मैं भलेप्रकार समझ गया कि यह अपना कर्मरूप सूक्ष्म शरीर, यह स्थूल दिखनेवाला शरीर, यह मेरे शरीरके कपड़े कलम, दावात, कागज, वर्तन आदि सब पुद्गल हैं तथा मैं जाननेवाला जीव हूं। अब चार अजीवोंका लक्षण और बताइये ।
शिक्षक-आकाश एक अखंड अनंत सर्वव्यापक द्रव्य है जो और सब द्रव्योंको अवकाश देता है या जगह देता है । हम माकाशमें ही चलते, बैठते, खडे होते, हाथ पग फैलाते हैं। पक्षी आकाशमें उड़ते हैं। आकाश (space)के दो विभाग हैं । अनंत आकाशके मध्यमें जहांतक जीव, पुद्गल, धर्मास्तिकाय तथा अधर्मास्तिकाय पाए जावें वह लोक (universe) है। जहां चारों तरफ मात्र आकाश ही है उसे अलोक (non-universe) कहते है।
काल द्रव्य वह है जिसके निमित्तसे सब पदार्थों में अवस्थाएं बदलती हैं। द्रव्यको पुराना करनेवाला कालद्रव्य है। हमारा कपड़ा कुछ दिनोंमें पुराना पड़जाता है क्योंकि कालद्रव्यकी सहायतासे वह हर समय हालतोंको बदलता है । हम बालकसे युवान तथा युवानसे वृद्ध होजाते है। हमारे शरीरको पुराना होने में निमित्त काल (time) है। जगत परिवर्तनशील है, हर क्षणमें बदलता है। कोई वस्तु एक ही दशामें नहीं रहती है-बदलानेवाला काल है। मिनट, घड़ी, घण्टा,
* आकाशस्यावगाहः॥ १८-५ ॥ त० सू० । ४ वर्तनापरिणामक्रिया परत्वा परत्वे च कालस्य२२५.स. सू..
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