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जैनोंके तत्त्व । लायक बातें हैं जो नौ भित्रर पदोंके द्वारा जानी जाती है । इललिये.नौ तत्वोंको नौ पदार्थ कहते हैं। -
शिष्य-सात तत्त्व या नौ तत्त्वोंके नाम बताइये। .''
शिक्षक-वे सात तत्त्व हैं-१ जीव, २ अनीव, ३ आस्रव, ४ बंध, ५ संवर, ६ निर्जरा, ७ मोक्ष ।* इनमें पुण्य तथा पाप जोड़नेसे नौ तत्व या नौ पदार्थ हो जाते हैं।
शिन्य इनका कुछ स्वरूप बना दीजिये। ' शिक्षक-जो अपने चेतना ( conscionsness ) लक्षण (differeuti) को रखते हुए सदा जीता रहे उसे जीव कहते हैं। चेतनाको उपयोग भी कहने है !x . शिष्य लक्षण किसे कहते हैं ?
शिक्षा-जिस चिह या गुणके द्वारा एक पदार्थको दूसरोंसे जुदा पहचान सकें उसे लक्षग कहते हैं। जैसे निमक व शक्कर दोनों सफेद सफेद दिखते है। निमकका लक्षण खारापना है व शकरका लक्षण मीठापना है। जबान पर दोनों को रखनेसे हम निमकको शकरसे अलग पहचान सकेंगे। निर्दोष लक्षण उसको कहते हैं जिसमें तीन दोप न हों-अव्याप्ति, अतिव्याप्ति और असंभव । जो लक्षण या पहचान पदार्थके एक हिस्से में पाया जावे, सबमें न पाया जावे वह लक्षण अव्याप्ति दोष सहित है। जो सब पदार्थमें न हो उसे ही अव्याप्ति कहते हैं। जैसे कोई कहे कि जानवर उसको कहते है जिसके सींग हो। इस लक्षणमें अव्याप्ति दोष है, क्योंकि
*जीवाजीवास्त्रत्रबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्वं ॥४१॥ त. सू.. x उपयोगो'लक्षणं ॥ ८॥५॥ त. सू.
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