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- मेरा कर्तव्य । भावसे रखनी चाहिये कि यदि कोई भक्तिके साथ निमंत्रण दें, भोजन करावें तो कर लेना चाहिये। यदि कोई यात्रा खर्च व अन्य. कार्यके लिये द्रव्य दें तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिये व उसे परोपकारमें लगाना चाहिये। . ___ इसके सिवाय जो धनरहित महोदय त्यागी होकर परोकार करना चाहें उनके लिये एक धर्मप्रवारक संस्था रहनी चाहिये जिसमें योग्य भण्डार रहना चाहिये, जिससे कछ नियमित संख्याके त्यागियोंका सखर्व जो उनके द्वारा धर्मप्रचारमें हो उसे देना चाहिये। वह संस्था उन धनरहित लागियों के जीवन निर्वाहकी जिम्मेदार होगी । वास्तवमें इस जमानेमें ऐसे ही त्यागी ईनाई पादरियों की तरह बहुत कुछ जगतका हित र सक्ते हैं । इसको हम पाक्षिक विरक्त. श्रावक कह सकेंगे।
जो महागय इन्द्रविनय करनेको असमर्थ है उनको किसी 'योग्य गृहिणीके साथ विवाद करके रहना चाहिये। ऐसे विवाहित युगल की पारी निकते है। दोनों युगल मा रहने हुए धर्म, समाज व जगतकी सेवा करें। यदि वे धनसम्पन्न हो तो धनकी आमदसे सब खर्च चलावें। यदि वे धनवान न हों और दम्पति परोपकारमें अपनी शक्ति लगाना चाहें तो धर्मप्रचारक संस्थाको व अन्य किसी परोपकारिणी संस्थाको उचित है कि दम्पतिके प्रतिष्ठासहित सादगीमे निर्वाहका सर्व खर्च देना स्वीकार करके उनकी जीवनपर्यंत सेवा स्वीकार करें। वे युगल बहुत अधिक- धनोपार्जनकी योग्यता रखते हुए भी थोड़े खर्च में संतोष करें। आवश्यक खर्च ही लेकर सेवा करें। संस्थाओंके प्रबन्धक, अधिष्ठाता, शिक्षक, सुपरिन्टे