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मेरा कर्तव्य ।
पशुओं, पक्षियों व जलचरोंकी हत्या शिकार के लिये, देवताओंपर बलि देंनके लिये व मांसाहारके लिये न करें । खानपान वस्त्रव्यवहाग्में यह ध्यान रखें कि जितनी कम हिंसासे काम चले पैसा वर्ताव करें । पशु समाजपर भी दया पालें वृथा वे सताएं, न जावें, इसपर ध्यान रखें। जो पशु हमारे उपयोगमें आसक्ते है, उनको पालकर हम उनसे दूध ले, उनसे हल चलावें, उनपर बोझा ढोवें, उनपर सवारी करें परन्तु उनसे उतनी ही मिहनत लेवें जितनी वे आराममें देसकें । उनको हमें अन्नपान समयपर देना चाहिये । चमडेका व्यवहार हम बहुत अल्प करें क्योंकि इस चमड़ेके लिये बहुत पशु मारे जाते हैं। हमें छोटे२ जंतुओंपर भी दया रखनी चाहिये। पानी भलेप्रकार छान कर पीना चाहिये इससे हमारी भीरक्षा है व हमारे मुखमें कीट व तृणादि नहीं जा सकेंगे । देशकालके अनुसार यथाशक्ति पानी छानकर पीनेका एक साधारण गृहस्थको अभ्यास रखना चाहिये तथा यह भी अभ्यास करना चाहिये कि भोजन दिवसमें किया जावे। इससे रात्रिको उड़नेवाले जंतुओंके प्राण चचते हैं व अपने भी मुखमें उन जंतुओंके कलेवर नहीं जाते हैं तथा दिवसका किया हुआ भोजन पचता भी अच्छी तरह है। अपने देशकालके अनुसार जिसमें किसी आवश्यक काममें बाधा नहीं आवे इस रात्रि आहार त्यागका अभ्यास करना चाहिये । गृहस्थोंको उचित है कि वे भलेप्रकार अपनी ही विवाहिता स्त्रीमें संतोष रक्खें तथा वे सम्पत्तिकी एक मर्यादा करले कि इतना धन 'पैदा कर लेनेपर हम संतोषसे रह कर नीवन बिताएंगे। व्याप्पारादि द्वारा धन पैदा करनेका काम अपने पुत्रोंको सौंप देंगे।