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विद्यार्थी जैन धर्म नि। न्डेन्ट, सरक्षक, प्रचारक आदि कार्य वे परोपकारभावसे करे सक्त है। अन्य जो गृहस्य जीवन में रहकर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थ सिद्ध करना चाहें उनको उचित है कि न्यायपूर्वक आजीविकासे धन कमावे व न्यायपूर्वक इन्द्रियोंके भोग करें, इन्द्रियोंके दास न बने किन्तु इन्द्रियोंपर स्वामित्व रखते हुए नियमित इंन्द्रिय भोग करें जिससे कभी शरीरमें निर्बलता न हो वीरता, साहस बना रहे, कोई बीमारी पास न आवे तथा आत्मध्यानके लिये जो साधन अभी हम आपको बता चुके है उनको करते रहे तथा परोपकारके लिये तन, मन, धन खर्च करनेका उत्साह रखें । वे गार्हस्थ जीवनमे रहते हुए समाजका सुधार करें। बाल विवाह, वृद्ध विवाह, अनमेल विवाह, कन्या विक्रय, पुत्र विक्रय, मरणमें बिरादरीका भोज, आतशबाजी, वेश्या नृत्य आदि बुराइयोंको दूर करावें । व्यर्थ व्ययको मिटावे । व्याहादिके खचर्चाको बहुत कम करावें । जनताका धन अधिकतर शिक्षा प्रचारमें खर्च करावें । अनाथ व विधवाओंकी रक्षा करावे,
औषधालय, पशुशाला, आदिका प्रचार करें । गुरुकुलोंको स्थापित करावे, समय निकालकर साहित्यकी सेवा करें । अच्छे पत्र निकालें, पुस्तकें लिखें, इन गृहस्थोंको भी दिनमे घंटा दो घण्टा समय परोपकारके लिये अवश्य निकाल लेना चाहिये । मानवोंका कर्तव्य है कि वे अन्य मानवोंको शिक्षित, स्वास्थ्ययुक्त, न्यायमार्गी व आत्मज्ञानी बनावें--उनको सताकर अपना स्वार्थ साधन न करें किंतु यथाशक्ति उनके साथ भलाई करे, उनके कष्टोंको मेटें । भूखेको अन्नपान, रोगीको. दुवाई, अज्ञानीको विद्या, तथा निराश्रय व भयमीतको आश्रय देकर भय रहित करें।