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मेरा कर्तव्य ।
[३९ भक्ति करते समय आपको जैनियों का परमपूज्य महामंत्र भी पढ़ लेना चाहिये । मैं आपको अर्थ सहित बताए देता है।
शिष्य-जरूर बताइये-मैं उसे भी कंट कग्लंगा।
शिक्षक -इस महामंत्रमें सब अक्षर ३५ पतीस हैं। इमे शुद्ध पढ़ना चाहिये ।
महा मंत्र। १ णो अरहताणं अक्षर ७ २-णनो सिद्धाणं ३-णो आइ.रयाण ४-ण उवझायाणं ५-णको लं.ए सबसहूगा " - -
अर्थ-हा लोकमें सर्व अहनोंको नमस्कार को. इस लोक में सर्व सिद्धोंको नमस्कार हो, इस लोकमें सर्व आचार्यो मे नस्कार हो, हम लोगमें मर्व च्यायोंको नमस्कार हो, इम लोरमें सर्व साधुको नमस्कार हो।
नोट-यहां लोर और सब ये दो शन्द पांचों ही पदों के लिये हैं। सर्व गद भृत, भविन्य, वर्तमानकालको झलकाता है। इसलिये हम मंत्रमें अनंत शुद्धात्माओंको नमस्कार है । इस ही लियं इसको महामंत्र कहते हैं।
इस जगतमें जितने बड़े पद हैं, इन्द्र, धणेन्द्र, चक्रवर्ती, महाराजा आदि सर्व जिनको नमस्कार करते हैं, ऐसे ये पांच पद (offices) हैं।