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मेरा कर्तव्य --- -शास्त्रको ध्यान से पढ़नेसे मन के -विकार शांत होनाते हैं व आत्माका स्वभार और भी साफ झलकता है, ज्ञानकी हड़ता होती जाती है।
शिप्य-कृपाकर बताइये कि मैं कौनसा मात्र देखा करूं ?
शिक्षा-मैं आपको इटोदेयके देखनेकी सम्मति ढुंगा व उसके पीछे आर आत्मधर्म फिर समाधिशतककोटेख जाई। ये तीनों अन्य दिगम्बर जैन पुस्तकालय, कापडियाभवन-सूरतसे हिन्दी भाषामें मिलगे, आर खूर समझ सकेंगे।
चोये साचनको मैं आपको पहले बता चुका है इसलिये जीवनमें सच्चे सुख व सच्ची गाति पाने का उपाय एक आत्मालपान है। जिनका मुख आय आत्मभ्यान है उसके सायनके लिये अपतीन साधा हैं। - आर कालेज के विद्यार्यो है, आरको समय ययपि कम है तथापि यदि आप अनही अत्मोन्ननिके मागमें न लोंगे तो गृहत्य जीवनमें जाकर तो आप और भी बहु पन्धी हो जायेंगे, आपको फुरपत ही न मिरेगी, परन्तु जो विद्यार्थी अपस्या अभ्यास जम जायगा तो जन्म. 'पर्यंत कभी न छूटेगा। और जीवन आनन्दमय होता चला जायगा।
शिन्य-मैं आपके उपदेशको मस्तकार चढ़ाता हूं। मेरे वोर्डिगर्म जितमंदिर है। मैं रोग प्रतिमाके सामने कुछ भक्ति कर लिया फरूंगा। आप कोई स्तुति बता दीजिये जो छोटीसी हो। मैं इयोपदेश मंगाकर कुछ मिनट पढ़ भी लिया करूंगा। आपसे तो मैं रोज मिलकर कुछ देर बातें करूंगा तथा बड़े सबेरे १० मिनट मैं आत्मध्यानका अभ्यास भी शुरू कर दूंगा। मैंने समझ लिया है कि यह मेरा साधन मेरे चित्तको निर्मल करेगा जिससे मुझे मेरे कालेजकी पढ़ाई में भी सुभीता मिलेगा। ...