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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। मूर्तियोंपर वस्त्रादिका चिह्न करते है वे ऐसा मानते है कि वन्त्र सहित भी माधु होसक्ता है। किंतु सभी बौद्ध व सर्व ही जैनी आत्मध्यानसे उन्नति मानते है। उस आत्मध्यानमें एक सहायक माधन ध्यानमय मुर्ति है। . शिष्य-क्या जैन और बौद्ध मतमे साम्यता है ? . शिक्षक - जैन मत और बौद्ध मतमे बहुत कुछ साम्यता है सो हम फिर आपको बताएंगे। अभी तो आपको यह समझाना था कि ध्यानमय मूर्तिके द्वारा गुणानुवाद भी आत्मव्यानमे एक सहकारी साधन है। अब हम दूसरे साधनकी जरूरत बताते है कि आत्मज्ञानी व आत्मध्यानी गुरुसे आत्मध्यानको समझा जावे। विना गुरुले ज्ञान ठीक नहीं होता। जैसे कालेजमे जो बातें सीखनी है उनको बतानेवाली युस्तकें तो सब होती ही है। परन्तु यदि सम्झानेवाले प्रोफेसर या अध्यापकं न हों तो उनको टीक २-भाव शिष्योंवी समं मे न आयगा इसी तरह आत्मध्यानका उपाय जैन शास्त्रोंमे तो लिखा है परन्तु आत्मध्यानी गुरुके विना ठीक २ समझमे नहीं आयगा। इसीले गुरु भक्ति या गुरु नेवावी भी आउदयक्ता है।
शिष्य मैने तो आपसे बहुतसा ज्ञान सीखा है। मैं तो आपको ज्ञानदाता गुरू मानता हूं।
क्षिक-भई, मैं भी एक श्रावक हूं । सचे अनुभवी गुरु साधुजन होते है जो गत दिन आत्मध्यानका अभ्यास करते है। यदि ऐसे गुरु मिल जावें तो उनसे ध्यानके मार्गका ज्ञान बहुत अच्छी तरह होसक्ता है। यदि ऐसा समागम दुर्लभ हो तो जो श्रावक कुछ आत्मध्यानके अभ्यासी हो उन हीसे लाभ लेना चाहिये।
तीसरा साधन आत्मज्ञानवर्द्धक शास्त्रोंका पढ़ना नित्य जरूरी है।