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विद्यार्थी निधर्म विक्षा। शिक्षक नीचे लिखी छोटीसी स्तुति आप पढ़ लिया करें।
छ श्रग्विणी। जय चिदानन्द आनन्दरूपी जिनं,
झा-मय दर्शमय वार्यमय मलहनं । राग नहि द्वेष नहि क्रोध नहि मन ना,
मोह ना शांक ना भाव अज्ञान ना ॥१॥ है कपट कोई ना लोभ ना काम ना.
पंच इन्द्रिय मई सौख्यका धाम ना। जन्म ना मर्ण न, खेद ना दोष ना
कोई सन्ताप ना कोई पर रोष ना ।।२।। की भागे हने शुद्ध आपी भये.
आपने आपों आप जानन भये । नाह है वर्ण रस मंध अरु फर्ग ना,
जड़ मई मूर्ति ना जड़ मई दर्गना ॥ ३ ॥ भ.प तो ज्ञान मय आप ध्याता वली
आपने सर्व वाघा जगतकी दली। भार ही पूज्य हो आप ही सिद्ध हो. । आपको देखते आप सम रिद्ध हो ॥४॥ आदिनाथं तुम्ही शान्तिनाथं तुम्हीं,
नेमिनाथं तुम्हीं पार्थनार्थ तुम्हीं। हो महावीर सन्मति परम गिव मई.
सुक्खस.गर तुम्हीं, देख समता भई ।। ५॥