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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा। शिष्य-मैंने सर्व ही चेतन शरीरधारी प्राणियोंको अपने समान समझ लिया है। सर्व ही शरीरधारी प्राणियोंमें स्वभावसे आत्मा शुद्ध है, कर्मसंयोगसे अशुद्ध है।
शिक्षक-एक बात ध्यानमें रखखो कि यह संसार एक नाटक'घर है जिसमे यह जीव जड़की संगतिसे नाना प्रकार पशु, पक्षी, कीट, वृक्ष, मनुष्य आदिके रूप बनाकर वर्तन किया करता है। स्वभावसे सब ही शुद्ध आत्मा है।
शिष्य-अब यह वताइये कि मेरा कर्तव्य क्या है। शिक्षक-कल इसी समय मिलेंगे तब वतावेंगे।