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आगे जाने पर कुमार एक महाअटवी में पहुँचें, वहाँ उसे अत्यन्त तृषा लगने से वह एक आम्रवृक्ष के नीचे बैठ गया और मंत्रीपुत्र जल की शोध करने के लिए गया। कुछ दूर जाकर जल लेकर मंत्रीपुत्र लौट आया, तो आम्रवृक्ष के नीचे अपराजित कुमार दिखाई नहीं दिया। तब वह सोचने लगा, 'लगता है भ्रांति से मैं वह स्थान भूल कर दूसरे स्थान पर आ गया हूँ! अथवा क्या अति तृषा के कारण कुमार स्वयं ही जल लेने गये हैं। ऐसा सोचता हुआ कुमार को ढूंढने के लिए वह एक-एक वृक्ष के पास घूमने लगा। परंतु किसी भी स्थान पर उसका पता न मिलने से वह मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। कुछ समय पश्चात् सचेत होने पर करुण स्वर में रोने लगा और बोलने लगा, हे कुमार! तेरी आत्मा को बता, तू क्यों वृथा मुझे व्यथित कर रहा है? हे मित्र! कोई भी मनुष्य तेरा अपकार या प्रहार करने में समर्थ नहीं है, तेरे दर्शन में कुछ मंगलमय हेतु भी संभव नहीं है। इस प्रकार अनेक प्रकार से विलाप करता हुआ उसे ढूंढता, गांव-गांव में घूमता-घूमता- नंदिपुर नगर में आया। उस नगरी के बाहर उद्यान में मंत्रीपुत्र दुःखी मन से खड़ा रहा। इतने में दो विद्याधर वहाँ आकर उसे इस प्रकार कहने लगे, ‘एक महावन में भुवनभानु नामका एक विद्याधन राजा है जो कि महाबलवान और परम ऋद्धिवाला है। वह एक महल की विकुर्वणा करके वन में ही रहता है। उसके कमलिनी और कुमुदनी नामकी दो पुत्रियाँ है। उनका वर तुम्हारा प्रिय मित्र होगा, ऐसा किसी ज्ञानी पुरुष ने कहा था। इसलिए हमारे स्वामी ने उनको लाने के लिए हमको भेजा था। हम उस वन में आए, तब तुम दोनों मित्रों को हमने देखा। तुम जल लेने गए तब हमने अपराजित कुमार का हरण करके उनको हमारे स्वामी भुवनभानु के पास ले गए। उदय प्रताप भानु के समान तेजस्वी कुमार को देखकर हमारे स्वामी भुवनभानु खड़े हो गए और संभ्रमपूर्वक एक उत्तम रत्नसिंहासन पर उनको बिठलाया। पश्चात् हमारे स्वामी ने उनकी सत्य स्वरूप गुण स्तुति की। तुम्हारे मित्र लज्जित हुए। हमारे स्वामी ने अपनी पुत्रियों के विवाह के लिए याचना की। परंतु तुम्हारे वियोग से दुःखी कुमार ने कुछ भी प्रत्युत्तर नहीं दिया। मात्र तुम्हारा ही चिंतन करते मुनि की तरह मौन धारण करके बैठे रहे। अतः हमारे स्वामी ने तुमको लाने की आज्ञा दी। तब हम तुम्हारी खोज करने निकले। तुमको खोजते-खोजते हम यहाँ आए। पुण्ययोग से तुम्हारे यहाँ दर्शन हुए। हे महाभाग्य! चलो उठो, शीघ्र वहाँ चलो। क्योंकि दोनों राजकुमारी और राजकुमार
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)