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इस प्रकार गुरू मुख से वचन सुनकर शंखराजा ने अपने पुंडरीक पुत्र को राज्य देकर दीक्षा अंगीकार की। उनके दोनों भाई मंत्री और यशोमती ने उनके पास दीक्षा ली। अनुक्रम से शंखमुनि ने गीतार्थ होकर महान कठिन तपस्या की। अर्हत् भक्ति आदि स्थानकों की आराधना से तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन किया अंत में पादपोपगमन अनशन करके शंखमुनि अपराजित विमान में उत्पन्न हुए और यशोमती आदि भी उसी निधि से अपराजित विमान को प्राप्त हुए।
(गा. 5 32 से 534)
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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