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देवानंद, आनंद, विपृथु, शांतनु, नरदेव, महाधनु और दृढ़धन्वा मुख्य थे। ये सब वसुदेव के साथ युद्ध में आए। साथ ही कृष्ण के भी अयुक्त पुत्र आये। जिनमें भानु, भामर, महायानु, अनुमानुक, बृहत्ध्वास, अग्निशिख, घृष्णु, संजय, अकंपन, महासेन, धीर, गंभीर, उदधि, गौतम, वसुधर्मा, प्रसेनजित्, सूर्य, चंद्रवर्मा, चारुकृष्ण, सुचारु, देवदत्त, भरत, शंख, प्रद्युम्न और शांब आदि महापराक्रमी पुत्र मुख्य थे। इसके अतिरिक्त अन्य भी हजारों कृष्ण के पुत्र युद्ध करने की इच्छा से वहाँ आये। उग्रसेन और उसके धर, गुणधर, शक्तिक, दुर्धर, चंद्र और सागर नाम के पुत्र युद्ध में आए। पितृपक्षीय काका ज्येष्ठ राजा के पुत्र सांत्वन और महासेन, विषमित्र के हृदिक, सिति तथा सत्यक नाम के पुत्र, हृदिक के कृतवर्मा और दृढ़धर्मा नामक पुत्र और सत्यक का युयुधान नामक पुत्र, साथ ही उनका गंध नामक पुत्र ये सभी आये। इसके अतिरिक्त अन्य दशाह के और राम कृष्ण के बहुत से पुत्र तथा कृष्ण की भुआ और और बहनों के बहुत से पराक्रमी पुत्र आये।
(गा. 154 से 193) पश्चात् क्रोष्टुकि के बताए हुए शुभ दिवस पर दारुक सारथि वाले और गरुड़ के चिह्नवाले रथ के ऊपर आरुढ़ होकर सर्व यादवों से परिवृत्त और शुभ शकुनों ने जिनका विजय सूचित किया है, ऐसे कृष्ण ने ईशान दिशा की ओर प्रयाण किया। अपने नगर से पैंतालीस योजन दूर जाकर युद्ध में चतुर कृष्ण ने सेनपल्ली ग्राम के समीप पड़ाव डाला।
(गा. 194 से 196) जरासंध के सैन्य से कृष्ण का सैन्य चार योजन दूर था। इनमें में अनेक उत्तम विद्याधर वहाँ आये और समुद्रविजय राजा को नमन करके बोले कि 'हे राजन्! हम आपके भाई वसुदेव के गुणों से वशीभूत हुए हैं। जो कि तुम्हारे कुल में सर्वजगत् की रक्षा करने में और क्षय करने में समर्थ ऐसे अरिष्टनेमि भगवान् हुए हैं, साथ ही जिसमें अद्वितीय पराक्रम वाले बलराम और कृष्ण हुए हैं और प्रद्युम्न, शांब आदि उच्च कोटि के पौत्र हुए हैं, उनको युद्ध में किसी अन्य की सहायता की जरूरत होती ही नहीं है, तथापि अवसर को जानकर भक्ति से हम यहाँ आए हैं। इसलिए हमको आज्ञा दीजिए हमें भी आपके सामंतवर्ग की गणना में लीजिए। समुद्र विजय ने कहा 'अति उत्तम'। तब वे बोले, 'यह
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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