Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 261
________________ अज्ञानता है ? इस समय मेरी दाक्षिण्यता को भी धिक्कार है । ये लोग केवल संसार समुद्र में ही नहीं पड़ते बल्कि ये सब स्नेह शिला बांधकर अन्यों को भी संसारसमुद्र में गिराते हैं । इसलिए अभी तो इन सभी का कहना मात्र वाणी से मान लूँ, पश्चात् समय आने पर तो अवश्य आत्महित ही करना है । पूर्व में श्री ऋषभदेव प्रभु ने जो विवाह किया था, वह तो मात्र स्वयं के उस प्रकार के भोग्यकर्म के कारण ही, क्योंकि कर्म की गति विचित्र है । इस प्रकार विचार करके श्री नेमिप्रभु ने उन सबका वचन स्वीकार किया, यह सुनकर समुद्रविजय आदि सर्व को अत्यन्त हर्ष हुआ । (गा. 96 से 121 ) तब कृष्ण ग्रीष्मऋतु वहाँ ही व्यतीत करके परिवार के साथ नेमि के योग्य कन्या देखने को उत्सुक होकर द्वारका आए । वहाँ सत्यभामा ने कहा कि, हे नाथ! मेरी राजिमती नामकी छोटी बहन है, वह अरिष्टनेमि के योग्य है। यह सुनकर कृष्ण बोले- हे सत्यभामा ! तुम वास्तव में मेरी हितकारिणी हो क्योंकि नेमिनाथ के योग्य स्त्री की चिंतारूपी सागर में से मेरा तुमने ही उद्धार किया है। तब कृष्ण स्वयं ही तत्काल उग्रसेन के घर गए । मार्ग में यादवों ने और नगरजनों ने संभ्रम से उसको जाते हुए देखा । उग्रसेन ने अर्ध्यपाद्य आदि से कृष्ण का सत्कार करके सिंहासन पर बैठाकर आगमन का कारण पूछा । कृष्ण बोले- हे राजन्! आपके राजीमति नामकी कन्या है, वह मेरे अनुज भाई नेमि कि जो मेरे से गुण में अधिक है, उसके योग्य है। ऐसे कृष्ण के वचन सुनकर उग्रसेन बोले- हे प्रभु! आज मेरे भाग्य फले हैं कि जिससे आप मेरे घर पधारें और फिर हमको कृतार्थ किया । हे स्वामिन्! यह गृह, यह लक्ष्मी, हम, ये पुत्री और अन्य सब भी आपके अधीन है । अधीनस्थ वस्तुओं के लिए प्रार्थना क्यों ? उग्रसेन के ऐसे वचन सुनकर कृष्ण प्रसन्न हुए। शीघ्र ही समुद्रविजय के पास आकर ये समाचार दिए। समुद्रविजय ने कहा- हे वत्स ! तुम्हारी पितृभक्ति और भ्रातृवात्सल्य देखकर मुझे बहुत हर्ष हुआ है । फिर तुमने मेरे नेमिकुमार को भोगोन्मुख किया, इससे हमको अत्यन्त आनंद उत्पन्न हुआ है क्योंकि अरिष्टनेमि विवाह करना स्वीकार करे तो ही ठीक हो, यह मनोरथ इतने समय तक तो हमारे मन में ही घूमता रहा । पश्चात् राजा समुद्रविजय ने क्रोष्टुकि को बुलाकर नेमिनाथ और राजीमति के विवाह के लिए शुभ दिन पूछा । तब क्रोष्टुक ने कहा कि 'हे राजन् ! वर्षाकाल में साधारण शुभ कार्य को भी प्रारंभ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 250

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