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इधर पांडव विहार करते-करते हस्तिकल्प नगर में आए, वहाँ से परस्पर प्रीति से कहने लगे कि अब यहाँ से रैवताचलगिरि मात्र बारह योजन दूर है, इससे कल प्रातः श्री नेमिप्रभुजी के दर्शन करके ही मासिक तप का पारणा करेंगे। इतने में तो लोगों के पास से उन्होंने सुना कि 'भगवान् श्री नेमिनाथजी ने अपने साधुओं के साथ निर्वाण प्राप्त किया। यह सुनते ही अत्यन्त शोक करते हुए वे सिद्धाचल गिरि पर आये। वहाँ अनशन करके केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्षपद प्राप्त किया। साध्वी द्रौपदी मृत्यु पाकर परमसिद्धि के धाम रूप ब्रह्म देवलोक में गई।
इस पर्व में अतुल तेजवाले बावीसवें तीर्थंकर, नवमें वासुदेव बलदेव और प्रति वासुदेव इन चारों पुरुषों के चरित्र का कीर्तन किया गया है। सिद्धान्त की दृष्टि से अवलोकन करने पर उनमें से एक पुरुष का चरित्र भी कानों में सुनने में आए तो उसे तीन लोक में भी अप्राप्य विस्मयकारी आख्यान सा लगेगा। ऐसा ही यह आख्यान है।
(गा. 126 से 128)
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)