Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 315
________________ शोकमग्न हो गए और सहोदर बंधु की तरह उन्होंने एक वर्ष तक कृष्ण की प्रेतक्रिया की। पश्चात् उनको दीक्षा लेने के इच्छुक जानकर श्री नेमिनाथजी ने चतुर्ज्ञानी ऐसे धर्मघोष नाम के मुनि के पांचसौ मुनियों के साथ वहाँ भेजा । उनके वहाँ आने पर जराकुमार का राज्याभिषेक करके राज्य पर बिठाया और पांडवों ने द्रौपदी के साथ उन मुनि के पास दीक्षा ली। उन्होंने अभिग्रह सहित तप प्रारंभ किया। भीम ने ऐसा अभिग्रह किया कि जो कोई भाले के अग्र भाग पर भिक्षा देगा, वही मैं ग्रहण करूँगा ।' यह अभिग्रह छः मास में पूरा हुआ। द्वादशांगधारी वे पांडव अनुक्रम से विहार करते करते श्री नेमिनाथ प्रभु को वंदन की उत्कंठा से आगे बढ़ने लगे । (गा. 90 से 95 ) श्री नेमिनाथ प्रभु जी ने मध्यप्रदेश आदि में विहार करके, उत्तरदिशा में राजपुर आदि शहरों में विहार करके, वहाँ से द्वीमान् गिरि में जाकर, साथ ही अनेक म्लेच्छ देश में भी विचरण करके अनेक राजाओं और मंत्रियों को प्रतिबोध किया। विश्व के मोह को हरने वाले प्रभु आर्य अनार्य देश में विहार करके पुनः द्वीमान् गिरि पर पधारे और वहाँ से किरात देश में विचरण किया। द्वीमान् गिरि पर से उतर कर दक्षिणापथ देश में आये और वहाँ सूर्य की भांति भव्यप्राणी रूप कमलवन को बोध दिया। (गा. 96 से 99 ) केवलज्ञान से लेकर विहार करते हुए प्रभु के अट्ठारह हजार साधु, चालीस हजार बुद्धिमान् साध्वियाँ, चार सौ चौदह पूर्वधारी, पंद्रह सौ अवधिज्ञानी, इतने ही वैक्रिय लब्धिवाले, इतने ही केवलज्ञानी, एक हजार ममः पर्यवज्ञानी, आठ सौ वादलब्धि वाले, एक लाख उनहत्तर हजार श्रावक और तीन लाख उनचालीस हजार श्राविकाएँ - इतना परिवार हुआ । इस परिवार से परिवृत्त अनेक सुर, असुर और राजाओं से युक्त हुए प्रभु अपना निर्वाण समय नजदीक जानकर रैवतगिरि पर पधारे। वहाँ इंद्र रचित समवसरण में विराजमान होकर प्रभु ने सर्व जीवों के अनुग्रह की भावना से अंतिम देशना दी। उस देशना से प्रतिबद्ध होकर अनेकों ने दीक्षा ली, अनेक श्रावक हुए और अनेकानेक भद्रिकभावी हुए। पश्चात् पाँच सौ छत्तीस मुनियों के साथ प्रभु ने एक महीने का पादपोपगम अनशन किया और आषाढ़ मास की शुक्ल अष्टमी को चित्रा नक्षत्र त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 304

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