Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Author(s): Surekhashreeji Sadhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 316
________________ में सायंकाल में शैलेशी ध्यान में स्थित होकर प्रभु ने उन मुनियों के साथ निर्वाण पद को प्राप्त किया। (गा. 100 से 109) प्रद्युम्न, शांब आदि कुमार, कृष्ण की आठों पट्टरानियाँ, भगवंत के बंधुगण अन्य भी अनेक व्रतधारी मुनियों ने एवं राजीमति आदि साध्वियों ने अव्यय (मोक्ष) पद प्राप्त किया । रथनेमि ने चार सौ वर्ष गृहस्थपन में, एक वर्ष छद्मस्थ पने में और पांचसौ वर्ष केवली पर्याय में इस प्रकार सब मिला कर नौ सौ एक वर्ष का आयुष्य परिपूर्ण किया । इस प्रकार कौमारावस्थ, छद्मस्थावस्था और केवली अवस्था के विभाग करके राजीमति ने भी आयुष्य भोगी । शिवादेवी और समुद्रविजय राजा माहेन्द्र देवलोक में गये । और अन्य दशार्हो ने महर्दिक देवत्व को प्राप्त किया। कौमारावस्था में तीन सौ वर्ष और केवली पने में सात सौ वर्ष इस प्रकार एक हजार वर्ष का आयुष्य श्री नेमिनाथ भगवंत ने भोगा । श्री नेमिनाथ प्रभु के निर्वाण के पश्चात् पाँच लाख वर्ष व्यतीत होने पर श्री नेमिप्रभु का निर्वाण हुआ । (गा. 110 से 116) भगवंत के निर्वाण के पश्चात् शकेन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने एक शिबिका विकुर्वी । शक्रेन्द्र ने विधिपूर्वक प्रभु के अंगों की पूजा करके स्वयं ने शिबिका में प्रभु को पधराया। देवताओं ने नैऋत्य दिशा में रत्नशिला पर गोशीर्ष चंदन के काष्ठ की चिता रची। इंद्रगण प्रभु की शिबिका को उठाकर वहाँ लाए और श्री नेमिप्रभुजी के शरीर को चिता में पधराया । इंद्र की आज्ञा से अग्निकुमारों ने उस चिता में अग्नि उत्पन्न की और वायुकुमारों ने शीघ्र ही उस अग्नि को प्रज्वलित किया। उनका देह दग्ध हो जाने के पश्चात् क्षीर सागर के जल से देवों ने अग्नि को बुझा दी । तब शक्र और ईशान आदि देवों ने प्रभु की दाढ़ों को ग्रहण किया। शेष अस्थियों को देवताओं ने ग्रहण की। देवियों ने पुष्प लिए, राजाओं ने वस्त्र लिए और लोगों ने भस्म ग्रहण की। प्रभु के संस्कार वाली वैर्ष्यमणि की शिलापर इंद्र ने अपने वज्र से प्रभुजी की प्रतिमा सहित एक पवित्र चैत्य कराया। इस प्रकार सर्व क्रिया करके शक्रादिक देवता अपने-अपने स्थान पर गये । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व ) (गा. 117 से 125 ) 305

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