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जो अनेक जंतु समूह की हिंसा से उत्पन्न हुआ हो और जो लार के जैसे जुगुप्सा करने योग्य है, ऐसे मधु (शहद) कौन चखे? थोड़े जंतुओं को मारना भी शौनिकहतो जो लाख शूद्र जंतुओं के क्षय से उत्पन्न होता इस मधु को कौन खाये? एक एक पुष्प में से रसलेकर मक्खियों का वमन किये हुए मधु को धार्मिक पुरुष कभी चखते भी नहीं।
(गा. 336 से 338) यदि औषध के रूप में भी मधु का सेवन करने तो वह नरक गति का बंध कराता है, क्योंकि अनेकों के प्राण नाश हो जाने से वह कालकूट विष के कण के समान होता है। जो अज्ञानी मधु के स्वाद की लोलुपता से इसे ग्रहण करते हैं, वे नारकीय वेदनाओं का भी आस्वाद करते हैं। उंबर, बड़, पीपल, काकउंदुबर और पीपल के फल जो बहुत से जंतुओं से आकुलित हो, इससे इन पाँचों वृक्ष के फल कभी खाना नहीं चाहिए। दूसरा भक्ष्य मिला नहीं हो तो और क्षुधा (भूख) से शरीर क्षाम (दुर्बल) हो गया हो तो भी पुण्यात्मा प्राणी उंबर आदि वृक्ष के फल खाते नहीं है।
(गा. 339 से 342) सर्व जाति के आर्द्र कंद, सर्व जाति की कुपलियाँ सर्व जाति के थोर, लवणवृक्ष की त्वचा, कुमारी (कुंवार) गिरिकर्णिका, शतावरी, विरुढ़, गहुची, कोमल इमली, पल्यंक, अमृत बेल, सूकर जाति के वाल और इसके अतिरिक्त अन्य सूत्रों में कहे हुए अनंतकाय पदार्थ कि जो मिथ्यादृष्टियों से अज्ञात हैं, वे सब दयालु पुरुषों के प्रयत्नपूर्वक वर्जित कर देना चाहिये। ___शास्त्र में निषेध करे हुए फल के भक्षण में अथवा विषफल भक्षण में जीव की प्रवृत्ति न हो, इस हेतु से चतुर पुरुषों को स्वयं अथवा अन्य को ज्ञात फल ही खाना चाहिये, अज्ञात फलों को त्याग देना चाहिए।
(गा. 343 से 346) रात्रि के समय में निरंकुश रूप से घूमते फिरते प्रेत, पिशाच आदि शूद्र देवों से अन्न उच्छिष्ट (झूठा) हो जाता है, इससे रात्रि में भोजन कदापि नहीं करना चाहिए। फिर रात्रि के समय में घोर अंधकार के कारण मनुष्यों की दृष्टि भी अवरुद्ध होने से भोजन में गिरते जंतु देखे नहीं जा सकते, इसलिए ऐसे रात
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)