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राजा रहेगा या हम राजा रहेगें। ऐसी प्रतिज्ञा लेकर हम पद्मनाभ के साथ युद्ध करेंगे।' कृष्ण ने यह बात स्वीकारी। तब वे पद्मनाभ के साथ युद्ध करने के लिए गये। पद्म ने क्षणभर में ही उनको हरा दिया। इसलिए उन्होंने कृष्ण के पास आकर कहा कि, 'हे स्वामिन! यह पद्मनाभ तो बहुत बलवान् है और बलवान् सैन्य से ही आवृत्त है। इसलिए यह तो तुम से ही जीता जा सकता है, हम से नहीं जीता जा सकता है, इसलिए अब आपको जो योग्य लगे वैसा करें। कृष्ण बोले- 'हे पांडवों! तब से तुमने पद्मनाभ राजा या हम राजा ऐसी प्रतिज्ञा ली थी, तब से ही तुम हार ही गये हो।" तब मैं राजा हूँ, पद्मनाभ नहीं ऐसा कहकर कृष्ण युद्ध करने चले और महाध्वनि वाला पाँचजन्य शंख फूंका। सिंह की गर्जना से मृग के टोले की गति की तरह उस शंख के नाद से पद्मनाभ राजा के सैन्य का तीसरा भाग टूट गया। तब कृष्ण ने शाङ्ग धनुष का टंकार किया, तो उसकी ध्वनि से दुर्बल डोरी की तरह पद्मनाभ के लश्कर का दूसरा तीसरा भाग टूट गया। जब स्वयं के सैन्य का तृतीयांश अवशेष रहा, तब पद्मनाभ राजा रणभूमि में से भाग कर तत्काल अमरकंका नगरी में घुस गया एवं लोहे की अर्गला द्वारा नगरी के दरवाजे बंद कर दिये। कृष्ण क्रोध से प्रज्वलित होकर रथ से नीचे उतर पड़े और तत्काल समुद्घात द्वारा देवता बनाए वैसे नरसिंह रूप धारण किया। यमराज के जैसे क्रोधायमान होकर दाड़ो खोलकर (फैलाकर) भयंकर रूप से मुख को फाड़ा। उग्र गर्जना करके नगरी के द्वार पर दौड़कर पैर से घात किया। इससे शत्रु के हृदय के साथ सर्व पृथ्वी कंपायमान हो गई। उनके चरणघात से किले का अग्रभाग टूट गया। देवालय गिर पड़े और कोट की दीवारें टूट गई। इन नरसिंह के भय से उस नगर में रहने वाले लोगों में से अनेक खड्डों में छुप गये, अनेक जल में घुस गये और अनेक मूर्छित हो गये। उस समय पद्मनाभ राजा द्रौपदी की शरण में आकर कहने लगा'हे देवी! मेरा अपराध क्षमा करो और यमराज जैसे इस कृष्ण से मेरी रक्षा करो।' द्रौपदी बोली- 'हे राजन मुझे आगे करके स्त्री का वेश पहनकर यति कृष्ण के शरण में जाएगा तो ही जीवित रह सकोगे। अन्यथा जिंदा भी नहीं रह सकोगे।' तब वह उसी प्रकार करके कृष्ण की शरण आया और नमस्कार किया। पद्मनाभ को शरण में आया देखा तब कृष्ण ने कहा कि 'अब तू भयभीत मत हो।' ऐसा कहकर पांडवों को द्रौपदी सुपुर्द की और रथारूढ़ होकर कृष्ण जिस मार्ग से आए थे उसी मार्ग से वापिस लौटने लगे।
(गा. 20 से 63)
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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