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हुआ है।' यह सुनकर शंकर ने बाण को कहा कि 'तू रण में स्त्री कार्य को छोड़कर अजेय होगा।' बाण इससे भी प्रसन्न हुआ।
(गा. 75 से 81) उषा अति स्वरूपवान् थी। इससे किन-किन खेचरों और भूचरों ने उसके लिए बाण से मांग नहीं की? सभी ने ही की। परन्तु किसी की मांग बाण को रूची नहीं। अनुरागी उषा ने चित्रलेखा नाम की विद्याधरी को भेजकर अभिरूद्ध को मन की भांति अपने घर बुलाया। उसे गांधर्व विवाह से विवाह करके जाते समय आकाश में रहकर बोला कि 'मैं अनिरूद्ध उषा का हरण करके ले जा रहा हूँ।' यह सुनकर बाण क्रोधित हुआ। इससे शिकारी जिस प्रकार कुत्तों से सूअर को रूधवाते हैं, वैसे ही उसने अपनी बाणावली सैन्य से अनिरूद्ध को रूंध लिया। उस समय उषा ने अनिरूद्ध को पाठसिद्ध विद्याएँ दी, जिससे पराक्रम में वृद्धि प्राप्त हुए अनिरुद्ध ने बाण के साथ बहुत समय तक युद्ध किया। अंत में बाण ने नाडापाश से प्रद्युम्न के पुत्र को हाथी के बच्चे की तरह बांध लिया। प्राप्ति विद्या ने तत्काल यह वृत्तांत कृष्ण को बताया। इसलिए कृष्ण बलराम, शांब और प्रद्युम्न को लेकर वहाँ आए। गुरुड़ध्वज (कृष्ण) के दर्शन मात्र से अनिरुद्ध के नागपाश टूट गये। शंकर के वरदान से और अपने बल से गर्वित हुए मदोन्मत बाण ने कृष्ण से कहा कि 'अरे क्या तूं मेरे बल को जानता नहीं है? तूने हमेशा दूसरों की कन्याओं का हरण किया है। इससे तेरे पुत्रपौत्रों को भी क्रमशः वैसी ही प्रवृत्ति है। परंतु अब मैं उसका फल तुमको बताता हूँ। कृष्ण ने कहा- 'अरे दुराशय! तेरे यह वचन उक्ति किस काम की है ? क्योंकि कन्या तो हमेशा ही दूसरे को देने की होती है, तो उसका वरण करने में क्या दोष है ? कृष्ण के ऐसे वचन सुनकर अनेक खेचरों से घिरे हुए बाण विद्याधर भृकुटी चढ़ाकर कृष्ण पर बाण फेंकने लगा। बाणों को छेदने में चतुर कृष्ण ने उसके बाणों को बीच में से ही काट डाला। इस प्रकार उन दोनों वीरों का बहुत समय तक बाणा-बाणी युद्ध चला। अंत में कृष्ण ने उसे अस्त्ररहित करके कृष्ण ने जिस प्रकार सर्प को गरुड़ काट डाला है वैसे ही उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके उसे यमद्वार पहुँचा दिया। पश्चात् कृष्ण उषा सहित अनिरुद्ध को लेकर शांब, प्रद्युम्न और बलराम के साथ हर्षित होते हुए पुनः द्वारका आ गए।
(गा. 82 से 95)
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)