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के दस पुत्र रण के मुखभाग पर रहे हुए थे, उनको यज्ञ में बकरे की तरह जरासंध ने मार डाला। उन कुमारों का वध देखकर कृष्ण की सेना पलायन कर गई। तब गायों के समूह के पीछे व्याघ्र की तरह जरासंध उस सेना के पीछे आया। उस समय उनके सेनापति शिशुपाल ने कृष्ण को हंसते हंसते कहा कि 'अरे कृष्ण! यह कोई गोकुल नहीं है, यह तो क्षत्रियों का रण है। कृष्ण ने कहाराजन! अभी तू चला जा, पीछे आना। अभी तो मैं रूक्मी के पुत्र के साथ युद्ध कर रहा हूँ। इसलिये मेरी मौसी चिरकाल तक रूदन करे ऐसी स्थिति में अभी तुझे मारकर नहीं लाना चाहता अतः तू अभी चला जा, मेरे समक्ष मत खड़ा रह मर्मबंधी बाण जैसे कृष्ण के इन वचनों से बंधे हुए शिशुपाल ने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा कर तीक्ष्ण बाण छोड़े, फलस्वरूप कृष्ण ने बाण द्वारा शिशुपाल का धनुष, कवच और रथ को तोड़ डाला। तब उछलती अग्नि की तरह वह खड्ग खींच कर कृष्ण के सामने दौड़ा। जैसे तैसे बड़बड़ाते उस दुर्भति शिशुपाल का खड्ग, मुकुट और मस्तक भी हरि ने अनुक्रम से काट डाला।
(गा. 389 से 404) शिशुपाल के वध से जरासंध अतिक्रोध में आकर यमराज जैसा भयंकर होकर अनेक पुत्रों और राजाओं को साथ लेकर रणभूमि में दौड़ा आया और बोला कि 'अरे यादवों! वृथा किसलिए भरते हो? मात्र उस गोपाल राम और कृष्ण को सौंप दो। इसमें तुम्हारे कुछ हानि नहीं है। ऐसे वचन सुनकर यादव लोग डंडे से ताड़ित सर्प की तरह बहुत गुस्सा हुए और विविध आयुधों को बरसाते जरासंध सामने दौड़े आए। जरासंध एक होने पर भी अनेक जैसा होकर घोर बाणों से मृगों को ज्याघ्र ही तरह यादवों को बींधने लगे। जब जरासंध युद्ध करने लगा तब कोई पैदल, रथी, सवार या गजारोहक उसके सामने नहीं टिक सका। पवन से उड़ाए हुए रुई की तरह यादवों का सर्व सैन्य जरासंध के बाणों से दुःखी होकर दसों दिशाओं में भाग गया। क्षणभर में तो जरासंध ने यादवों के सैन्य रूप महासरोवर को महिषवत् कर दिया और यादव उसके आसपास दूर होने पर भी दादुर मेंढ़क जैसे हो गये।
__ (गा. 405 से 411) जरासंध के अट्ठाईस ही पुत्र दृष्टिविष सर्प की तरह शस्त्ररूप विषवाले बलराम को घेरने लगे और उसके उनहत्तर पुत्र कृष्ण को मारने की इच्छा से
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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