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वाला और सिंह की ध्वजा वाला समुद्रविजय है, यह शुक्लवर्णी अश्व के रथ वाला और वृषभ के चिह्न से युक्त ध्वजा वाला अरिष्टनेमि है, यह चितकबरा वर्ण के अश्ववाला और कदली के चिह्नवाला अक्रूर है, यह तितिर वर्णी घोड़े वाला सात्यकी है, यह कुमुद वर्णी अश्ववाला महानेमिकुमार है, यह तोते की चोंच जैसे अश्ववाला उग्रसेन है, यह सुवर्णवर्णी अश्ववाला और मृगध्वज के चिह्न वाला जयकुमार है । यह केबोज देश के अश्ववाला स्तक्षणरोम का पुत्र सिंहल है, कपिल और रक्त अश्ववाला और ध्वजा में शिशुमार का चिह्नवाला यह मेरु है, यह कपोत जैसे वर्ण वाले अश्ववाला पुष्करध्वज सारण है, यह पंचपुंड्न घोड़े वाला और कुंभ की ध्वजा वाला विदुरथ है, सैन्य के मध्यभाग में रहा हुआ श्वेत अश्ववाला और गरुड़ के चिह्न युक्त ध्वजा वाला यह कृष्ण है जो कि बगुलियों से जैसे आकश में वर्षाकाल का मेघ शोभा देता है, वैसा शोभायमान है। उसके दक्षिण की ओर अरिष्टवर्णी घोड़ेवाला और ताल की ध्वजा वाला रोहिणी का पुत्र बलराम है जो जंगल कैलाश जैसा शोभित है। इसके अतिरिक्त ये अन्य बहुत से यादव विविध अश्व, रथ और ध्वजा वाले साथ ही महारथी है कि जिनका वर्णन करना असंभव है।'
(गा. 374 से 388 )
इस प्रकार हंसक मंत्री के वचनों को सुनकर जरासंध ने क्रोध से धनुष का ताड़न किया और वेग से अपना रथ बलराम और कृष्ण के सामने चलाया । उस समय जरासंध का युवराज पुत्र यवन क्रोध करके वसुदेव के पुत्र अक्रूर आदि को मारने के लिए उसकी ओर दौड़ा आया । सिंहों के साथ अष्टापद की तरह उस महाबाहु यवन का उनके साथ संहारकारी युद्ध हुआ । बलराम के अनुज भाई सारण ने अद्वैत बल से वर्षा के मेघ की तरह विचित्र बाण वर्षा करके उसको रौंद डाला । जैसे कि मलयगिरि हो, वैसे मलयनाम के हाथी से उस यवन ने घोड़े सहित सारण के रथ को चूर्ण कर दिया। फिर जब वह हाथी टेड़ा होकर सारण पर दंतप्रहार करने आया उस समय सारण ने पवन से हिलाये हुए वृक्ष के फल की तरह यवन के मस्तक को खड्ग से छेद डाला। यह देखकर वर्षाऋतु में मयूरवृंद की तरह कृष्ण की सेना नाचने लगी। अपने पुत्र का बध देखकर जरासंध क्रोधित हुआ, तब मृगों को केसरी सिंह मार डालता है वैसे वह यादवों को मारने के लिए धनुष लेकर प्रवृत्त हुआ। आनंद, शत्रुदमन, नंदन, श्रीध्वज, ध्रुव, देवानंद, चारुदत्त, पीठ, हरिषेण और नरदेव ये बलराम
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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