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बकता है ? क्षत्रीय वाणी में शूर नहीं होते, परन्तु पराक्रम में शूर होते हैं।' यह सुनकर हिरण्यनाम अभिचंद्र पर तीक्ष्ण बाण फेकने लगा। उन सबको मेघधारा को पवन के जैसे अर्जुन के बीच में ही काट डाला। इसलिए उसे अर्जुन पर अनिवार्य रूप से बाण-श्रेणी फेंकनी चालू की। इतने में भीम ने बीच में आकर गदाप्रहार से उसे रथ से नीचे गिरा दिया। इससे हिरण्यनाभ शरमा गया। पुनः रथ पर चढ़कर क्रोध से होंठ काटता हुआ वह सर्व यादव सैन्य पर तीक्ष्ण बाण वर्षा करने लगा। परन्तु उस बड़े सैन्य में से कोई भी घुड़सवार, हस्तस्तवार, रथी या पदाति उससे मारा नहीं गया। तब समुद्रविजय का पुत्र जयसेन क्रोध करके धनुष खींच कर हिरण्यनाभ के साथ युद्ध करने उसके सामने आया। इसलिए अरे भाणजे! तू यमराज के मुख में कैसे आया? ऐसा कहकर हिरण्यनाभ ने उसके सारथि को मार डाला। यह देख क्रोधित होकर जयसेन ने उसका कवच, धनुष और ध्वजा तोड़ डाली। उसके सारथि को भी यमराज के घर पहुँचा दिया। हिरण्यनाभ ने भी क्रोधित होकर मर्म को बींधे ऐसे दस तीक्ष्ण बाणों के द्वारा जयसेन को मार डाला। यह देख उसका भाई महीजय रथ में से उतर कर ढाल तलवार लेकर हिरण्यनाम की ओर दौड़ा उसे आता देखकर हिरण्यनाभ ने दूर से ही क्षुरप्र बाण द्वारा उसका मस्तक उड़ा दिया। तब अपने दो भाईयों का वध हो जाने से क्रोधित होकर अनाधृष्टि उसके साथ युद्ध करने लिए आया।
(गा. 342 से 355) जरासंध के पक्ष में जो जो राजा थे वे सर्व भीम, अर्जुन और यादवों के साथ अलग अलग द्वंद्वयुद्ध करने लगे।ज्योतिषियों के स्वामी जैसे प्राणज्योतिषपुर का राजा भगदत्त हाथी पर बैठकर महानेमि के सामने युद्ध करने दौड़ा और बोला कि 'अरे महानेमि! मैं तेरे भाई का साला रूक्मि या अश्मक नहीं हूँ, परंतु मैं तो नारकी का बैरी कृतांत जैसा हूँ, इसलिए तूं यहाँ से खिसक जा।' इतना कहकर अपने हाथी को वेग से चलाया और महानेमि के रथ को मंडलाकार घुमाया। महानेमि ने हाथी के पैरों के तल में बाण मारे जिससे उस हाथी का पैर पीड़ित होने से भगदत्त सहित पृथ्वी पर गिर पड़ा। तब अरे! तू रूक्मि नहीं है। ऐसा कहकर हंसकर प्रकृति से दयालु ऐसे महानेमि ने धनुष्य कोटि से उसका स्पर्श मात्र करके छोड़ दिया।
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)