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अश्व और सोलह हजार पदाति जितने सैन्य की व्यवस्था की। उसकी परिधि में सवा छः हजार राजा रहे तथा मध्य में पांच हजार राजा और अपने पुत्रों के साथ जरासंध रहा। उसके पृष्ठभाग में गंधार और सेंधव की सेना रही। दक्षिण में घृतराष्ट्र के सौ पुत्र रहे, बाजु की ओर मध्य देश के राजा रहे और आगे अन्य अगणित राजा रहे, आगे के भाग में शकट व्यूह रचकर उसकी संधि में पचास-पचास राजा स्थापित किये। इसमें अंदर एक गुल्म में से दूसरे गुल्म में जा सके ऐसी गुल्मरचना में अनेक राजा सैन्य सहित रहे। इस चक्रव्यूह के बाहर विचित्र प्रकार के व्यूह रचकर अनेक राजा खड़े रहे। पश्चात् राजा जरासंध ने सत्य प्रतिज्ञा वाले, महापराक्रमी, विविध संग्राम में विख्यात हुए
और रणकुशल कोशल देश के राजा हिरण्यनाम का उस चक्रव्यूह के सेनापति पद पर अभिषेक किया। उस समय सूर्य अस्त हो गया।
(गा. 234 से 245) उस रात्रि में यादवों ने भी चक्रव्यूह के समक्ष टिक सके ऐसा और शत्रुराजाओं से दुर्भेद्य गरुड़व्यूह रचा। उस व्यूह के मुख पर अर्धकोटि महावीर कुमार खड़े रहे और उसके शिरो भाग में राम और कृष्ण खड़े रहे। अक्रूर, कुभद्र, पद्म, सारण, विजयी, जय, जराकुमार, सुमुख, दृढ़मुष्टि, विदूरथ, अनाधृष्टि और दुर्मुख इत्यादि वसुदेव के पुत्र एक लाख रथ लेकर कृष्ण के पीछे की ओर रहे। उनके पीछे उग्रसेन एक लाख रथ लेकर रहे। उनके पृष्ठ भाग में उनके चार पुत्र उनके रक्षक रूप से खड़े थे। और वे पुत्र सहित उग्रसेन की रक्षा के लिए उनके पीछे धर, सारण, चंद्र, दुर्धर और सत्यक नाम के राजा खड़े रहे। राजा समुद्रविजय के महापराक्रमी भाईयों और उनके पुत्रों के साथ दक्षिण पक्ष का आश्रय करके रहे। उनके पीछे महानेमि, सत्यनेमि, दृढ़नेमि, सुनेमि, अरिष्टनेमि, विजयसेन, मेध, महीजय, जेतः सेन, जयसुन, जय और महाधुति नामक समुद्रविजय के कुमार रहे। उसी प्रकार पच्चीस लाख रथों सहित अन्य भी अनेक राजा समुद्रविजय के पार्श्वभाग में उनके पुत्र की तरह खड़े हुए। बलराम के पुत्र और युधिष्ठिर आदि अमित पराक्रमी पांडव वामपक्ष का आश्रय करके रहे और उन्मूल, निषध, शत्रुदमन, प्रकृतिधुति, सत्यकि, श्रीध्वज, देवानंद, आनंद, शांतनु, शतधन्वा, दशरथ ध्रुव, वृथु, विपृथु, महाधनु, दृढ़धन्वा, अतिवीर्य और देवनंद ये पच्चीस लाख रथों से परिवृत धृष्टराष्ट्र के पुत्रों का वध करने में
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)