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किया। प्रतीत हुआ इन तीन शंखों और अनेक वाजित्रों के नाद से समुद्र में रहे गए मगरमच्छों की तरह शत्रुसैन्य में सुभट अत्यन्त क्षोभ को प्राप्त हुए। नेमि, अनाधृष्टि और अर्जुन ये तीनों महापराक्रमी सेनापति अपार बाणों की वृष्टि करते हुए कल्पांतकाल के सागर की तरह आगे बढ़े। चक्रव्यूह के आगे मुख्यसंधि की ओर चक्रव्यूह रचकर रहे हुए शत्रुपक्ष के राजा उनका भुजवीर्य सहन न करने से अति उपद्रव के कारण भाग गये। तत्पश्चात् उन तीनों वीरों ने मिलकर वन के हाथियों की तरह गिरिनदी के तट को तोड़े वैसे चक्रव्यूह को तीन स्थानों से तोड़ दिया। पश्चात् सरिता के प्रवाह की तरह स्वयमेव मार्ग बनाकर वे चक्रव्यूह में घुस गये। उनके पीछे-पीछे अन्य सैनिकों ने भी प्रवेश किया। तत्काल ही दुर्योधन, रौधिर और रूक्मि ये तीनों वीर अपने सैनिको को स्वस्थ करते हुए युद्ध की इच्छा से उद्यत हुए। महारथियों से घिरे हुए दुर्योधन ने अर्जुन को, रौधिरि ने अनाघृष्टि को और रूक्मि ने महानेमि को रोका। तब उन छहों वीरों का और अन्य उनके पक्ष के हजारों महारथियों का परस्पर द्वंद्व युद्ध प्रारंभ हुआ। अन्य के वीरत्व को सहन नहीं करने वाले महानेमि ने अहंकारी वाचाल और दुर्भद रूक्मि को अस्त्र और रथ से रहित कर दिया। जब रूक्मि वध्यकोटि में आ गया, तब उसकी रक्षा करने के लिए शत्रु तप आदि सात राजा उनके बीच में आ गए। एक साथ बाणवृष्टि करते हुए उन सातों राजाओं के धनुषों को शिवादेवी के कुमार ने मृणाल की तरह छेद दिया। बहुत समय तक युद्ध करने के पश्चात् शत्रु तप राजा ने महानेमि पर एक शक्ति छोड़ी। उस जाज्वल्यमान शक्ति को देखकर सर्व यादव आतंकित हो गए। उस शक्ति के मुख में से विविध आयुधों को धारण करने वाले और क्रूर कर्म करने वाले हजारों किंकर उत्पन्न होकर महानेमि के सामने आए। उस समय मातलि ने अरिष्टनेमि को कहा कि 'हे स्वामिन! धरणेन्द्र के पास से रावण ने जिस प्रकार शक्ति प्राप्त की थी, उसी प्रकार इस राजा ने तप करके बलीन्द्र के पास से यह शक्ति प्राप्त की है, यह शक्ति मात्र वज्र से ही भेदी जा सकती है। ऐसा कहकर नेमिकुमार की आज्ञा से उस सारथि ने महानेमि के बाण में वज्र को संक्रमित किया, फलस्वरूप महानेमि ने उस वज्रवाले बाण को छोड़कर उस शक्ति को पृथ्वी पर गिरा दिया और उस राजा को रथ और अस्त्र से रहित कर दिया। शेष छः राजाओं के धनुषों को भी तोड़ दिया। इतने में अन्य रथ में आरूढ़ होकर रूक्मि पुनः नजदीक आया। तब मानवंतों में अग्रणी शत्रु तप आदि सात
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)