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और रूक्मि सहित आठों राजा एकत्रित होकर महानेमि के साथ युद्ध करने लगे। रूक्मि जो जो धनुष लेता, उन सभी को महानेमि छेदने लग गये। इस प्रकार उसके बीस धनुषों को तोड़ डाला। तत्पश्चात् उसने महानेमि पर कोबेरी नाम की गदा फेंकी, उसे महानेमि ने आग्नेयास्त्र से भस्म कर दिया। युद्ध में अन्य की अपेक्षा सहन नहीं करने वाले रूक्मि ने महानेमि पर लाखों बाणों की वर्षा करने वाला वैरोचन नामका बाण फेंका। महानेमि ने माहेन्द्र बाण से उसका निवारण किया और एक अन्य बाण से रूक्मि के ललाट में ताड़न किया। उस प्रहार से जख्मी हुए रूक्मि को वेणुदारी ले गया, तो वे सातों राजा भी महानेमि से उपद्रवित होकर शीघ्र ही वहाँ से खिसक गए। समुद्रविजय ने द्रुमराजा को स्तंभित किया भद्रक को अक्षोभ्य पराक्रम वाले अक्षोभ्य ने वसुसेन को जीत लिया। सागर ने पुरिमित्र नामके शत्रुराजा को युद्ध में मार डाला। हिमवान् जैसे स्थिर हिमवान् को धृष्टद्युम्न ने भग्न कर दिया। बल के द्वारा धरणेन्द्र जैसे धरण ने अन्वष्टक राजा को अभिचंद्र ने उद्धत शतधन्वा राजा को मार डाला। पूरण ने द्रुपद को, सुनेमि ने कुंतिभोज को, सत्यनेमि ने महापद्म को
और दृढ़नेमि ने श्रीदेव को हरा दिया। इस प्रकार यादववीरों से भग्न हुए शत्रुराजा सेनापति के पद पर स्थापित हिरण्यनाम के शरण में गए। इधर वीर, भीम और अर्जुन ने साथ ही बलराम के पुत्रों ने मेघ जैसे बगुलों को भगा देते हैं, वैसे ही घृतराष्ट्र के पुत्रों को भगा दिया। अर्जुन द्वारा प्रक्षेपित बाणों से दिशाओं में अंधकार व्याप्त हो गया और उसके गांडीव धनुष के घोर निर्घोष से समग्र विश्व बधिर सा हो गया। धनुष को आकर्षण करके वेग से विपुल शर संधान करते हुए उस वीर का एक दूसरे बाण का धनुष पर संधान तथा प्रक्षेपण का अंतर आकाश में स्थित देवता भी न तो जान सकते और न ही देख सकते थे।
(गा. 265 से 303) तत्पश्चात् दुर्योधन, काशी, त्रिगर्त, सबल, कपोत, रोमराज, चित्रसेन, जयद्रथ, सौवीर, जयसेन, शूरसेन और सोमक ये सर्व मिलकर क्षत्रिय व्रत का त्याग करके अर्जुन के साथ युद्ध करने लगे। शकुनि के साथ सहदेव, दुःशासन के साथ भीम, उलूक के साथ नकुल, शल्य के साथ युधिष्ठिर, दुर्भूषण आदि छः राजाओं के साथ सात्यकी सहित द्रौपदी के पाँच पुत्र और शेष राजाओं के साथ बलराम के पुत्र परस्पर युद्ध करने लगे। एक साथ बाणों को वर्षाते दुर्योधन आदि के बाणों को तो अकेले अर्जुन ने ही कमलनाल की जैसे लीलामात्र में छेद
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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