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सूर्यपाक रसोई सीखा हुआ है। यह सुनकर दवदंती ऊँचे कान करके पिता से बोली- पिताजी! किसी दूत को भेजकर तलाश कराओ कि वह रसोइया कैसा है? क्योंकि नलराजा के अतिरिक्त कोई सूर्यपाक रसोई जानता नहीं है हो सकता है कि वे गुप्तवेशधारी नलराजा ही हों! तब भीमराजा ने स्वामी के कार्य में कुशल ऐसा कुशल नाम का एक उतम ब्राह्मण को बुलाकर सत्कारपूर्वक आज्ञा दी कि तुम सुसुमारपुर जाकर राजा के उस नये रसोईये को देखो और वह कौनसी कौनसी कलाएं जानता है साथ ही उसका रूप कैसा है? यह देखकर निश्चय करो। आपकी आज्ञा प्रमाण है ऐसा कह वह ब्राह्मण शुभ शकुन से प्रेरित हो शीघ्र सुसुमारपुर आया। वहाँ पूछता पूछता वह कुबडे के पास गया और उनके पास बैठा।
(गा. 950 से 958) उनके सर्व संग विकृति वाले देखकर उसे बहुत खेद हुआ। उसने सोचा कि यह कहाँ ? और नलराजा कहाँ ? कहाँ मेरू और कहाँ सरसों। दवदंती को वृथा ही नल की भाँति हुई है। ऐसा निश्चय मन में अच्छी तरह धारण करके वह नलराजा के निदांगर्भित दो श्लोक बोला, उसमें उसने कहा कि सभी निर्दय, निर्लज्ज, निःसत्व
और दुष्ट लोगों में नलराजा एक ही मुख्य है कि जिन्होंने अपनी स्त्री का त्याग किया। अपनी विश्वासी और मुग्धा स्त्री को अकेली छोड़कर चले जाते थे अल्पमति नलराजा के चरणों को उत्साह कैसे आया होगा? इस प्रकार बार बार वह बोलने लगा इससे यह सुनकर अपनी दवदंती को याद करते नलराजा नेत्रकमल में अनवरत अश्रु निपातित कर रोने लगे। जब ब्राह्मण ने पूछा कि तू क्यों रोता है ? तब वह बोला, तुम्हारा करूणामय गीत सुनकर मैं रोता हूँ। तब कुबड़े ने उन श्लोकों का अर्थ पूछा, तब वह ब्राह्मण द्यूत से लेकर कुंडिनपुर पहुँचने तक की दवदंती की सारी कथा कह सुनाई। फिर कहा- अरे कुब्ज! तू सूर्यपाक रसोई बनाता है, ये सुसुमारपुर नगर के राजा के दूत ने आकर हमारे भीमराजा को कहा। यह सुनकर भीमराजा की पुत्री दवदंती ने अपने पिता को प्रार्थना पूर्वक कहा कि सूर्यपाक रसोई बनाने वाले नल ही होने चाहिये, दूसरा कोई वैसा नहीं है।
___ (गा. 957 से 966) इसलिए तुझे देखने के लिए भीमराजा ने मुझे भेजा है, परंतु तुझे तो देखकर मुझे विचार होता है कि दुराकृतिवाला तू कुबडा कहाँ ? और देव सदृश रूपवंत नल राजा कहाँ ? कहाँ जुगनू और कहाँ सूर्य ? परंतु यहां आते समय मुझे
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)