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का शत्रु बताया तत्पश्चात् अनुक्रम से समुद्रविजयादि दशार्ह काकाओं को और उनके पीछे बैठे अपने पिता की पहचान कराई। उस समय ये देव जैसे दोनों पुरूष कौन है? इस प्रकार मंच पर स्थित सभी राजा गण और नगर जन परस्पर विचार करते हुए उनको देखने लगे।
(गा. 267 से 273) कंस की आज्ञा से प्रथम तो उस अखाड़े में अनेक मल्ल युद्ध करने लगे। उसके पश्चात् कंस से प्रेरित पर्वत की आकृति युक्त चाणूर मल्ल उठा। मेघ की तरह उग्र गर्जना करता हुआ और करास्फोट द्वारा सर्व राजाओं को आह्वान करता हुआ वह बोला, जो कोई वीर पुत्र हो अथवा जो कोई वीरमानी दुर्धर पुरूष हो वह मेरी बाहुयुद्ध की श्रद्धा पूरी करे।
(गा. 274 से 277) इस प्रकार अति गर्जना करने वाले उस चाणूर मल्ल का गर्व सहन नहीं करने वाले महाभुज कृष्ण मंच पर से नीचे उतरकर उसके सामने करास्फोट किया। सिंह के पूँछ के आस्फोट की भाँति कृष्ण के करास्फोट के उग्रध्वनि के भूमि और अंतरिक्ष को गुंजायमान कर डाला। यह चाणूर बय और वपु से बड़ा श्रम करने में कठोर बाहु युद्ध से ही आजीविका करने वाला दैत्य के जैसा क्रूर है
और यह कृष्ण तो दुग्धमुख मुग्ध कमलोदर से भी कोमल और वनवासी होने से मल्लयुद्ध से अनजान है इस लिए इन दोनों का युद्ध उचित नहीं है यह अघटित हो रहा है ऐसे विश्वनिंदित काम को धिक्कार है। इस प्रकार ऊँचे स्वर से बोलते हुए लोगों का चारों तरफ कोलाहल होने लगा। तब कंस ने क्रोध से कहा इन दोनों गोपबालकों को यहाँ कौन लाया है? गाय का दूध पीकर उन्मुक्त हुए ये दोनों बालक स्वेच्छा से यहाँ आए हैं, तो वे स्वेच्छा से युद्ध करें। इसमें इनको कौन रोके ? फिर भी जिनको भी इन दोनों की पीड़ा होती हो वे अलग होकर मुझे बताएँ। कंस के इन वचनों को सुनकर सभी जन चुप हो गए। अपने नेत्र कमल को विकसित करते हुए कृष्ण बोले- चाणूर मल्लू कुंजर राजपिंड से पुष्ट हुआ है सदा मल्लयुद्ध का अभ्यास करता है और शरीर में महासमर्थ है, फिर भी गाय के दूध का पान करके जीने वाला मैं गोपाल का बालक सिंह का शिशु जैसे हाथी को मारे वैसे उसको मार डालता हूँ।
(गा. 278 से 286)
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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