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विमान के गिरने का हेतु विचार करते हुए नीचे देखा। तब वहाँ एक तेजस्वी बालक उन्हें दिखलाई दिया। तब मेरे विमान गिराने वाला यह कोई महात्मा बालक है। ऐसा जानकर उसे लेकर अपनी कनकमाला नाम की रानी को पुत्र रूप से अपर्ण किया फिर अपने मेघकूट नामक नगर में जाकर ऐसी बात फैलाई कि मेरी पत्नी गूढगर्भा थी। उसने अभी अभी एक पुत्र को जन्म दिया है। तब उस कालसंवर खेचर ने पुत्रजन्म का महोत्सव किया और उसके तेज से दसों दिशाओं में प्रद्योत होता देखकर उसका नामकरण प्रद्युम्न किया।
(गा. 134 से 138) इधर रूक्मिणी ने कृष्ण के पास आकर पूछा कि पुत्र कहाँ है? तब कृष्ण ने कहा कि तुम अभी ही तो पुत्र को ले गई हो। रूक्मिणी बोली, अरे नाथ! क्यों मुझसे छल कर रहे हो ? मैं पुत्र को लेकर नहीं आई। तब कृष्ण ने जान लिया कि अवश्य ही कोई मुझे छलकर गया है। तुंरत ही पुत्र की तलाश कराई, परंतु मिलने के कोई आसार दिखे नहीं। तब रूक्मिणी मूर्छित होकर गिर पडी। थोडी देर में सर्वत्र समाचार प्रसर जाने से वह सर्व परिजिनों के साथ तारस्वर में रूदन करने लगी। एक सत्यभामा के अतिरिक्त सर्व यादव उनकी पत्नियाँ आदि सर्व परिवार दुखी हो गया। कृष्ण जैसे समर्थ पुरूष को भी पुत्र का वृत्तांत क्यों नहीं मिला? ऐसा बोलती हुई रूक्मिणी दुखी कृष्ण को और दुखी करने लगी। सर्व यादवों सहित कृष्ण उद्वेग में रहने लगे।
(गा. 139 से 142) इतने में एक दिन नारद सभा में आए। उन्होंने पूछा, क्या हुआ? तब कृष्ण बोले हे नारद! रूक्मिणी के सद्यजात बालक को मेरे हाथ में से किसी ने हरण कर लिया, उसकी शोध में क्या आप कुछ जानते हैं ? नारद बोले, यहाँ अतिमुक्त नाम के महाज्ञानी थे, वे तो अभी ही मोक्ष में गये। इससे अभी भारतवर्ष में कोई ज्ञानी नहीं है। फिर भी हे हरि! अभी पूर्व विदेह क्षेत्र में सींमधर स्वामी नाम के तीर्थंकर हैं। वे सर्व संशयों का छेद करने वाले हैं। इसलिए वहाँ जाकर उनको पूछंगा। तब कृष्ण और अन्य यादवों ने नारद की पूजा की। नारद सीमंधर प्रभु क वहाँ शीघ्रता से गये। वहाँ प्रभु समवसरण में विराजमान थे। उनको प्रणाम करके नारद ने पूछा हे भगवान्! कृष्ण और रूक्मिणी का पुत्र अभी कहाँ है?
(गा. 143 से 149)
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)