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च्यवकर वह रूक्मिणी हुई है। पूर्व भव में उसने मयूरी के बच्चे का वियोग कराया था, इससे वह रूक्मिणी इस भव में सोलह वर्ष तक पुत्र विरह का दुख अनुभव करेगी।
___ (गा. 251 से 256) रूक्मिणी का पूर्व भव सुनकर सीमंधर स्वामी को नमन करके नारद वैताढय गिरि पर मेघकूट नगर में आये, वहाँ संवर विद्याधर के पास आकर कहा कि तुम्हारे पुत्र हुआ वह बहुत अच्छा हुआ। नारद के ऐसे वचनों से संवर ने प्रसन्न होकर नारद की पूजा की और प्रद्युम्न पुत्र को बताया। नारद ने वह पुत्र रूक्मिणी के जैसा ही देखकर भगवंत के कथन की प्रतीती हुई। पश्चात संवर की आज्ञा लेकर द्वारका में आए। वहाँ कृष्ण आदि को उस पुत्र का सर्व वृत्तांत कहा
और रूक्मिणी को भी उसके लक्ष्मीवती आदि के पूर्वभव की बात बताई। रूक्मिणी ने वहाँ से ही सीमंधर स्वामी प्रभु को भक्ति से अंजलिबद्ध हो नमस्कार किया। और सोलह वर्ष के पश्चात पुत्र का मिलन होगा, ऐसे अरिहंत प्रभु के वचनों से स्वस्थ हुई।
(गा. 257 से 263) पूर्व में श्री ऋषभ स्वामी के कुरू नाम का एक पुत्र था, जिसके नाम से कुरूक्षेत्र कहलाया। उस कुरू का पुत्र हस्ति हुआ था, जिसके नाम से हस्तिनापुर नगर बसा। उस हस्ति राजा के संतान में अनंतवीर्य नाम का राजा हुआ। उसका पुत्र कृतवीर्य राजा हुआ। उसका पुत्र सुभूम नाम का चक्रवर्ती हुआ। उसके पश्चात असंख्य राजा हो जाने के बाद शांतनु नाम के राजा हुए। उनके गंगा और सत्यवती दो पत्नियाँ थी। उसमें से गंगा के पराक्रमी भीष्म नामक पुत्र हुआ और सत्यवती के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नाम के दो पुत्र हुए विचित्रवीर्य के अंबिका अंबालिका और अंबा नाम की तीन स्त्रियां थी। उनके अनुक्रम से धृतराष्ट्र पांडू और विदुर नाम के पुत्र हुए। उसमें पांडू धृतराष्ट्र को राज्य सौंप कर मृगया में मशगूल रहने लगा। धृतराष्ट्र ने सुबल राजा के पुत्र और गंधार देश के राजा की गांधारी आदि आठ बहनों से विवाह किया। उससे दुर्योधन आदि सौ पुत्र हुए। पांडू राजा के कुंती नाम की स्त्री से युधिष्ठिर भीम और अर्जुन नाम के तीन पुत्र हुए और दूसरी माद्री कि जो शल्यराजा की बहन थी, उससे नकुल और सहदेव इस प्रकार महाबलवान पुत्र हुए। विद्या और भुजबल से उग्र ऐसे
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)