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पाँचों पांडू कुमार पंचानन सिंह की तरह खेचरों से भी अजेय थे। अपने ज्येष्ठ बंधु के प्रति विनीत और दुर्नीति को सहन नहीं करने वाले वे पाँचों पांडव अपने लोकोत्तर गुणों के द्वारा लोगों को आश्चर्यचकित करने लगे।
(गा. 264 से 272) किसी समय कांपिल्यपुर से द्रुपदराजा के दूत ने आकर नमस्कार करके पांडूराजा को इस प्रकार कहा हमारे स्वामी द्रुपदराजा के चुलनी रानी के उदर से प्रसूत और धृष्टधुन्न की छोटी बहन द्रोपदी नामक कन्या है, उसके स्वंयवर में दसों दशाहों बलराम, कृष्ण, दमदंत, शिशुपाल, रूक्मि, कर्ण, सुयोधन और अन्य राजाओं को तथा पराक्रमी कुमारों को द्रुपद राजा ने दूत भेजकर बुलाया है। ये सभी वहाँ जा रहे हैं, तो आप भी इन देवकुमारों जैसे पाँचों कुमारों के साथ वहाँ आकर स्वंयवर मंडप को अलंकृत करो। यह सुनकर पाँच जयवंत बाणों द्वारा कामदेव की तरह पांचों पुत्रों से युक्त पांडु राजा कापिल्यपुर गये और अन्य भी अनेक राजा वहाँ आए। द्रुपद राजा से पूजित प्रत्येक राजा अंतरिक्ष में स्थित ग्रहों की तरह स्वंयवर मंडप में उपस्थित हुए। उस अवसर पर स्नान करके शुद्ध उज्जवल वस्त्र पहन पर माल्यांलकार धारण करके और अहँतप्रभु की पूजा करके रूप में देवकन्या जैसी द्रोपदी सखियों के परिवृत सामानिक देवताओं की भांति कृष्ण आदि राजाओं से अलंकृत स्वयंवर मंडप में आई। उसकी सखि उसे प्रत्येक राजा का नाम ले लेकर बताने लगी।
(गा. 273 से 279) उनको अनुक्रम से देखती देखती जहाँ पाँच पांडव बैठे थे, वहाँ आई और उनको अनुरागी होकर उन पांचों के ही कंठ में स्वंयवर माला आरोपित की। उस समय यह क्या? यह क्या कहते हुए सर्व राजमंडप आश्चर्य चकित हो गए। इतने में कोई चारणमुनि आकाशमार्ग से वहाँ आए। अतः कृष्ण आदि राजाओं ने उन मुनि को नमस्कार करके विनयपूर्वक पूछा कि क्या इस द्रोपदी के पांच पति होंगे? मुनि बोले- यह द्रोपदी पूर्व भव के कर्म से पांच पति वाली होगी। परंतु इसमें आश्चर्य क्या है ? क्योंकि कर्म की गति महाविषम है। उसका वृत्तांत सुनोचंपानगरी में सोमदेव सोमभूति और सोमदत नाम के तीन ब्राह्मण रहते थे। वे सहोदर बंधु थे। धन धान्य से परिपूर्ण थे, अनुक्रम से उनकी नाग श्री भूत श्री और यक्ष श्री नाम की पत्नियां थी। तीनों भाई परस्पर स्नेह रखते थे। इससे एक
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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