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पाप कर्म के लिए मुझ से कुछ कहना नहीं। इस प्रकार उसको ऐसा कहकर घर छोड़कर प्रद्युम्न नगर के बाहर चला गया और वहाँ कालांबुका नाम की वापिका के मुंडेर पर ग्लानि पूर्वक बैठ विचार करने लगे।
(गा. 391 से 396) इधर कनकमाला ने नाखून से सारे शरीर को खरोंच लिया और चिल्लाने लगी। तब उसकी चिल्लाहट सुनकर क्या हुआ? ऐसे पूछते हुए उसके पुत्र वहाँ दौडे आए। वह बोली कि तुम्हारे पिता ने तो उस प्रद्युम्न को पुत्र रूप से माना है परंतु उस दुष्ट युवा ने भार्जार जैसे पिंड देने वाले का भी विदारण करता है वैसे ही उसने मेरी कदर्थना करी। यह हकीकत सुनकर वे सभी क्रोधित होकर कालांबूका के तीर पर गए और अरे पापी! अरे पापी! ऐसा बोलते हुए प्रद्युम्न पर प्रहार करने लगे। तब विद्या के प्रभाव से प्रबल हुए प्रद्युम्न ने लीलामात्र में सिंह जैसे सांभर को मारता है
वैसे ही उसने सवंर के पुत्रों को मार डाला। पुत्रों का वध सुनकर संवर भी क्रोधित होकर प्रद्युम्न को मारने आया, परंतु विद्या से उत्पन्न की हुई माया द्वारा प्रद्युम्न ने संवर को जीत लिया। पश्चात प्रद्युम्न ने पश्चाताप पूर्वक मूल से लेकर कनकमाला का सर्व वृत्तांत संवर को कहा। यह सुनकर पश्चाताप करते हुए संवर ने प्रद्युम्न की पूजा की। इतने में वहाँ नारद मुनि प्रद्युम्न के पास आए।
(गा. 397 से 403) प्रज्ञप्ति विधा से पहचान कर नारद जी की प्रद्युम्न ने पूजा की और उनको कनकमाला की सर्व हकीकत कह सुनाई। तब नारद जी ने सीमंधर प्रभु द्वारा हुआ प्रद्युम्न और रूक्मिणी का सर्व वृत्तांत अथ से इति तक कह सुनाया। और कहा कि हे प्रद्युम्न! जिसका पुत्र पहले विवाह करेगा उसको दूसरी को अपने केश देने होंगे। ऐसी प्रतिज्ञा तुम्हारी सापान माता सत्यभामा के साथ तुम्हारी माता रूक्मिणी ने की है। उस सत्यभामा का पुत्र भानुक अभी हाल ही विवाह करने वाला है, इससे यदि उसका पहले विवाह हुआ तो तुम्हारी माता प्रण में हार जाएगी और उसे अपने केश देने पड़ेंगे। तब केशदान की हानि से और तुम्हारे वियोग की पीड़ा से तुम्हारे जैसा पुत्र होने पर भी रूक्मिणी मृत्यु का वरण कर लेगी। यह समाचार सुनकर प्रद्युम्न नारद के साथ प्रज्ञप्ति विद्या द्वारा निर्मित विमान में बैठकर शीघ्र ही द्वारकापुरी के पास आये।
(गा. 404 से 409)
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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