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बलवान् शक्ति हों तो उसकी रक्षा करे। यह सुनकर यह कौन दुर्बुद्धि मरना चाहता है, “ऐसा बोलते कृष्ण हाथ में धनुष लेकर सैन्य सहित उसके पीछे दौड़े। प्रद्युम्न ने विद्या के सामर्थ्य से उनके धनुष को तोड़ दिया, हाथी को जैसे दंत रहित कोई कर दे। उसी प्रकार प्रद्युम्न ने कृष्ण को आयुध विहीन कर दिया। उस समय जैसे ही हरि व्यथित हुए, तैसे ही उनकी दाहिनी भुजा फड़कने लगी। इसलिए यह बात उन्होंने बलराम को बताई। उसी समय नारद ने आकर कहा, कृष्ण ! यह रूक्मिणी सहित तुम्हारा ही पुत्र प्रद्युम्न है। उसे ग्रहण करो
और युद्ध की बात छोड़ दो। उसी समय प्रद्युम्न कृष्ण के चरणों में नमन करके, बलराम के चरणों में भी नमन हेतु झुक गये। उन्होंने गाढ़ आलिंगन करके बारम्बार उसके मस्तक पर चुंबन किया। मानो यौवन सहित ही जन्मा हो वैसा दैव की लीला को धारण करता प्रद्युम्न को अपने उत्संग में बिठाकर कृष्ण लोगों के मन में विस्मय उत्पन्न करते हुए रूक्मिणी के साथ इंद्र की तरह उस वक्त द्वार पर रचित नवीन तोरणों से भृकुटी के विभ्रम को कराती द्वारिका में प्रवेश किया।
(गा. 482 से 493)
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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