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और माणिभद्र नाम का पुत्र हुआ। पूर्व भव के क्रम से वे श्रावक धर्म पालने लगे। एक बार माहेंद्र नाम के एक मुनि वहाँ समवसरे।
(गा. 171 से 180) उनके पास धर्म श्रवण कर अर्हदास ने दीक्षा ले ली। पूर्णभद्र और माणिभ्रद उन माहेंद्र मुनि को वंदन करने जा रहे थे कि वहाँ मार्ग में एक कुतिया और चांडाल को देखकर उन पर उन्हें स्नेह उत्पन्न हुआ। इससे उन्होंने महर्षि के पास आकर नमन करके पूछा कि यह चांडाल और कुतिया कौन है, कि जिनको देखने से ही हमको स्नेह उत्पन्न होता है? मुनि बोले तुम पूर्व भव में अग्निभूति
और वायुभूति नाम के ब्राह्मण थे। सोमदेव नामक तुम्हारे पिता और अग्निला नाम की तुम्हारी माता थी। वह सोमदेव मृत्यु के पश्चात इस भरतक्षेत्र में शंखपुर में जितशत्रु नाम का राजा हुआ जो सदा परस्त्री में आसक्त था।
____ (गा. 181 से 184) अग्निला मृत्यु के पश्चात उसी शंखपुर में सोमभूति नाम के ब्राह्मण की रूक्मिणी नाम की स्त्री हुई। एक बार वह रूक्मिणी अपने घर के आंगन में खड़ी थी, उस समय उस मार्ग से जाते जितशत्रु राजा ने उसे देखा। उसी समय वह कामवश हो गया। इससे उसने सोमभूति को अपराधी घोषित करके उसकी पत्नि को अपने अंतःपुर में प्रवेश कराया। उसके विरह से पीड़ित सोमभूति अग्नि में जला हो वैसे दुखी रहने लगा। राजा जितशत्रु उस स्त्री के साथ एक हजार वर्ष तक क्रीड़ा करके मरकर पहली नरक में लीन पल्योपम की आयुष्य वाला नारकी हुआ। वहाँ से निकल कर हिरण हुआ। उस भव में शिकारी के द्वारा मारे जाने पर वह मायाकपटी श्रेष्ठी पुत्र हुआ। वहाँ से मरण होने पर माया के योग से हाथी हुआ। उस भव में दैवयोग से उसे जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, फलस्वरूप अट्ठारह दिन अनशन करके मृत्यु के पश्चात तीन पल्योपम की आयुष्य वाला वैमानिक देवता हुआ। वहाँ से च्यव कर वह चंडाल हुआ है और वह रूक्मिणी अनेक भव में भ्रमण करके यह कुतिया हुई है पूर्व भव के तुम्हारे माता पिता होने से इससे तुम्हारा स्नेह उत्पन्न हुआ है।
(गा. 185 से 191) इस प्रकार अपने पूर्व भव का वृत्तांत सुनकर पूर्णभद्र और मणिभद्र को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। पश्चात उन्होंने चंडाल और कुतिया को प्रतिबोध
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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