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धनुष्य अक्षय बाण वाले तूणीर नंदन नाम की खड्ग कौमोदकी गदा और गरूडध्वज रथ इतनी वस्तुएँ दी। राम को वनमाला, मूसल, दो नील वस्त्र ताल ध्वज रथ अक्षय तूणीर तरकश धनुष और हल दिये । दसों दशाह को रत्नों के आमरण दिये, क्योंकि वे राम कृष्ण के पूज्य थे । पश्चात सर्व यादवों ने कृष्ण को शत्रुसंहारक जानकर हर्ष से पश्चिम समुद्र के तीर पर उनका अभिषेक किया। उसके बाद राम सिद्धार्थ नाम के सारथि वाले तथा कृष्ण दारूक नाम के सारथि वाले रथ में बैठकर द्वारिका में प्रवेश करने को तैयार हुए और ग्रह नक्षत्रों से परिवृत सूर्य चंद्र की तरह अनेक रथों में बैठे हुए यादवों से परिवृत होकर उन्होंने जय जय के नाद के साथ द्वारिका में प्रवेश किया। कृष्ण की आज्ञा से कुबेर द्वारा निर्दिष्ट महलों में दशार्ह राम और कृष्ण अन्य यादव और उनका परिवार आकर रहा । कुबेर ने साढे तीन दिन तक सुवर्ण रत्न धन विचित्र वस्त्र और धान्य की वृष्टि करके उस अभिनव नगरी को धन वैभव पूर्ण कर दिया।
(गा. 419 से 426)
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व )