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कृष्ण को ही वरण करने का जानकर उस बुआ ने एक गुप्त दूत भेजकर कृष्ण को इस प्रकार कहलाया कि माघ मास की शुक्ल अष्टमी को नागपूजा के बहाने में रूक्मिणी को लेकर नगर के बाहर उद्यान में आऊँगी । हे मानद ! जो आपको रूक्मिणी का प्रयोजन हो तो उस समय आ पहुँचना । नहीं तो उसका शिशुपाल के साथ विवाह कर दिया जाएगा।
(गा. 22 से 30 )
इधर रूक्मि ने अपनी बहन रूक्मिणी से विवाह करने के लिए शिशुपाल को बुलाया तो वह बड़ी सेना लेकर कुंडिनपुर आया । रूक्मिणी के वरण के लिए तैयार होकर शिशुपाल को आया हुआ जानकर नारद ने कृष्ण को समाचार दिये । तब कृष्ण भी अपने स्वजनों से अलक्षित रूप से चुपचाप बलराम के साथ अलग अलग रथ में बैठकर कुंडिनपुर आये । उस समय बुआ एवं सखियों से घिरी हुई रूक्मिणी नागपूजा का बहाना करके उद्यान में आई । वहाँ कृष्ण रथ में से नीचे उतरे और प्रथम अपना परिचय देकर रूक्मिणी की बुआ को नमस्कार करके रूक्मिणी को बोले, मालती के पुष्प की सुंगध से भ्रमर आता है, उसी प्रकार तेरे गुणों से आकर्षित होकर मैं कृष्ण तेरे पास आया हूँ । इसलिए इस मेरे रथ में बैठ जा । तब उसके भाव को जानकर बुआ ने आज्ञा दी, तो रूक्मिणी तुरंत कृष्ण के साथ रथ में हृदय की तरह आरूढ हो गई । जब कृष्ण कुछ दूर चले तब अपना दोष ढंकने के लिए बुआ और दासियाँ मिलकर चिलाई कि अरे रूक्मि! अरे रूक्मि! इस तुम्हारी बहन रूक्मिणी को चोर की तरह राम सहित कृष्ण बलात् हरणकर ले जा रहे हैं।
(गा. 31 से 39 )
दूर जाने के पश्चात राम कृष्ण ने पाँचजन्य और सुघोष शंख फूंकें, जिससे समुद्र की तरह समग्र कुंडिनपुर क्षुभित हो गया । महापराक्रमी और महाबलवान रूक्मि और शिशुपाल बड़ी सेना लेकर राम कृष्ण के पीछे दौड़े। उनको पीछे आते देखकर उत्संग में बैठी रूक्मिणी भयभीत होकर बोली- हे नाथ! यह मेरा भाई और शिशुपाल बड़े क्रूर और बहुत पराक्रमी हैं, और उसके पक्ष के अन्य बहुत से वीर भी तैयार होकर उसके साथ आ रहे हैं । यहाँ आप दोनों भाई तो अकेले हो इसलिए मुझे डर लग रहा है कि अब क्या होगा ? हरि उसके ऐसे भयत्रस्त वचनों को सुनकर हास्य करके बोले प्रिय भय मत कर,
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व )
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