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महासौभाग्यवान वसुदेव तेरे पिता हैं। स्तनमय से पृथ्वी सिंचन करती हुई देवकी नेत्रों में अश्रु लाकर प्रत्येक महिने में तुमको देखने के लिए यहाँ आती है। दाक्षिण्यता के सागर अपने पिता वसुदेव कंस के आग्रह से मथुरा में रहे हुए हैं। मैं तुम्हारा बड़ा सम्पन्न सौतेला भाई हूँ। तुम्हारे पर विघ्न की शंकावाले पिता की आज्ञा से मैं तुम्हारी रक्षा करने के लिए यहाँ आया हूँ। कृष्ण ने पूछा तो पिता ने मुझे यहाँ क्यों रखा है ? तब राम ने कंस का भातृवध संबंधित सर्व वृत्तांत कह सुनाया। यह सुनकर वायु द्वारा अग्नि की तरह कृष्ण को दारूण क्रोध चढ़ा और उन्होंने तत्क्षण कंस को मारने की प्रतिज्ञा की। तब नदी में स्नान करने के लिए प्रवेश किया।
(गा. 25 4 से 261) कंस का प्रिय मित्र हो, ऐसा कालिय नाम का सर्प यमुना के जल में मग्न हुए कृष्ण को डंसने के लिए उनके सामने दौड़ा। उसके फण में स्थित मणि के प्रकाश से यह क्या है? ऐसे संग्रम पाकर राम कुछ कह ही रहे थे कि इतने में तो कृष्ण ने कमलनाल की तरह उसको पकड लिया। फिर कमल नाल से वृषभ जैसे नासिका में अकेल डाले वैसे किया। उसके ऊपर चढकर कृष्ण से ने उसे बहुत देर से जल में घुमाया। बाद में उसे निर्जीव जैसा करके, अत्यंत दुखी करके कृष्ण बाहर निकले। उस वक्त स्नानाविधि करने वाले ब्राह्मण ने वहाँ आकर कौतुक से कृष्ण को घेर लिया। गोपों से घिरे हुए राम तथा कृष्ण मथुरा की ओर चले, कुछेक समय में वे नगरी के दरवाजे के पास आये।।
__ (गा. 262 से 266) उस समय कंस की आज्ञा से महावत ने पद्मोत्तर और चंपक नामक दो हाथियों को तैयार कर रखे थे, उनके आगे कृष्ण राम के समक्ष रौदने हेतु बढाया जिससे वे दोनों उनके सन्मुख दौड़े। कृष्ण ने खींच कर मुट्ठि के प्रहार से सिंह की तरह पद्मोत्तर को मार डाला और राम ने चंपक को मार दिया। उस समय नगर जन परस्पर विस्मित होकर बताने लगे कि ये दोनों अरिष्ट वृषभ आदि को मारने वाले नंद के पुत्र हैं। तब नील और पीत वस्त्र को पहनने वाले और वनमाला को धारण करने वाले और ग्वालों से घिरे हुए वे दोनों भाई मल्लों के अक्षवाट अखाड़े में आए। वहाँ एक महामंच पर बैठे हुए लोगों को उठाकर दोनों भाई परिवार के साथ निःशंक होकर बैठ गए। तब राम ने कृष्ण को कंस
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)