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सुख के लिए बोध देने वाले आप अवतरे है। हे भगवतं! आपके चरण निंरतर मेरे मानस के विषय में हंस रूप को भजो ओर मेरी वाणी आपके गुणों की स्तवना करने में चरितार्थ सफल होवे।
(गा. 187 से 194) इस प्रकार स्तुति करके जगन्नाथ प्रभु को उठाकर इंद्र शिवादेवी के पास लाये और उनके पास से जैसे लिया वैसे ही वहाँ रख दिया। पीछे भगवन् का पालन करने के लिए पांच अप्सराओं को छायामाता के रूप में वहाँ रहने की आज्ञा करके इंद्र नंदीश्वर द्वीप गये और वहाँ यात्रा करके अपने स्थानक में गये।
(गा. 195 से 196) प्रातःकाल सूर्य के समान उद्योत करने वाले महाकांतिमान पुत्र को देखकर समुद्रविजय राजा ने हर्षित होकर महान जन्मोत्सव किया। भगवंत जब गर्भ में थे तब माता ने अरिष्टमयी चक्र धारा स्वप्न में देखी थी इससे पिता ने उनका नाम अरिष्टनेमि स्थापित किया। अरिष्टनेमि का जन्म सुनकर हर्ष के प्रकर्ष से वसुदेव आदि ने मथुरा में भी महोत्सव किया।
(गा. 197 से 199) किसी समय देवकी के पास आए हुए कंस ने उसके घर में ध्राणपुट नासिका छेदी हुई उस कन्या को देखा। इससे भयभीत होकर कंस ने अपने निवास पर आकर उत्तम नैतिक को बुलाकर पूछा कि देवकी के सातवें गर्भ से मेरी मृत्यु होगी ऐसा एक मुनि ने कहा था वो वृथा था क्या? नैमितिक ने कहा कि ऋषि का कहा हुआ कभी मिथ्या होता ही नहीं है, तुम्हारा अंत लाने वाला देवकी का सातवाँ गर्भ किसी भी स्थान पर जीवित है यह जानिये। इसकी परीक्षा के लिए अरिष्ट नाम का तुम्हारा बलवान बैल, केशी नाम का अश्व और दुर्दात खर और मेष को वृंदावन में खुला छोड़ दो। पर्वत जैसे दृढ इन चारों को स्वेच्छा से क्रीडा करते करते जो मार डाले उसे ही देवकी का सातवाँ गर्भ और तुमको मारने वाला जानना। क्रमागत ज्ञानियों ने कहा है कि भुजाबल में वासुदेव पुत्र अद्वितीय है। वह वासुदेव सुवन महाक्रूर कालीनाग का दमन करेंगे, चाणूर मक्का वध करेंगे पमोत्तर और चंपक नाम के दो हाथियों को मारेंगे और वहीं तुमको भी मारेंगे।
(गा. 200 से 208)
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)