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मानो निर्मल किया हुआ नीलमणि हो वैसा हृदयानंदन पुत्र यशोदा के उत्संग में रहा हुआ देखा। पश्चात देवकी गोपूजा के बहाने से हमेशा वहाँ जाने लगी। तब से ही लोगों में गोपूजा के व्रत का प्रवर्तन हुआ।
(गा. 116 से 122) अन्यदा सूर्पक की दो पुत्री शकुनि और पूतना विद्याधारिणियाँ जो पिता का वैर लेने के लिए वसुदेव का अन्य उपकार करने में असमर्थ थी, वे डाकण की जैसी पापिणियों खेचरियों यशोदा और नंद आदि के यहाँ रहे कृष्ण को मारने के लिए गोकुल में आई। शकुनि ने गाडी के ऊपर बैठकर नीचे रहे हुए कृष्ण को दबाया। और उसके पास कटु शब्द किया। पूतना ने विष से लिप्त अपना स्तन कृष्ण के मुख में दिया। उस समय कृष्ण की सानिध्य में रहे हुए देवताओं ने उस गाडे से ही उन दोनों पर प्रहार करके मार डाला। नंद जब घर आये तब अकेले रहे कृष्ण को बिखरे हुए गाडे को और उन दोनों खेचरियों को मरी हुई देखा। मैं लुट गया ऐसा बोलते हुए नंद ने कृष्ण को उत्संग में लिया और आक्षेप से ग्वालों को कहा यह गाडा किस प्रकार बिखर गया? और ये राक्षस जैसे रूधिर से व्याप्त मरी हुई ये स्त्रियां कौन है? अरे! यह मेरा वत्स कृष्ण एकाकी ही उसके भाग्य से ही जीवित रहा है। गोप बोला हे स्वामिन्! बाल होने पर भी इस तुम्हारे बलवान बालक ने गाड़े को बिखेर दिया और इसने अकेले ही इन दोनों खेचरियों को मार डाला। यह सुनकर नंद ने कृष्ण के सब अंगों को देखा। उसके सर्व अंग अक्षत देखकर नंद ने यशोदा से कहा, हे भद्रे! इस पुत्र को अकेला छोड़कर दूसरा काम करने तू क्यों जाती है?
(गा. 1 2 3 से 131) आज तूने थोडे समय के लिए छोड़ा तो वह ऐसे संकट में आ गया। किंतु अब तेरे घी के घड़े धुल जाते हो तो भी कृष्ण को छोडकर अन्यत्र जाना मत। तुझे मात्र इसे ही संभालना है, दूसरा कुछ भी काम करने की जरूरत नहीं है। इस प्रकार अपने पति के वचन सुनकर हाय! मैं लुट गई। ऐसा कुंदन करने लगी और हाथों से छाती को कूटती हुई यशोदा ने कृष्ण के पास आकर उसको उठा लिया। मेरे लाल! तुझे कहीं लगी तो नहीं? ऐसा पूछती हुई कृष्ण के सर्व अंगों का निरीक्षण हस्त स्पर्श से करने लगी सब जगह से हाथ फेरा और उसके मस्तक पर चुंबन किया और छाती से दबा लिया। तब से यशोदा आदरपूर्वक निंरतर उसे
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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