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अपने पास ही रखने लगी। उस पर भी उत्साहशील कृष्ण छल करके इधर-उधर भागने लगे।
(गा. 132 से 136) एक दिन एक रस्सी कृष्ण के उदर के साथ बांधी और एक रस्सी उरवल के साथ बांधकर उसके भाग जाने के भय से यशोदा पड़ौसी के घर गई। उस वक्त सूर्पक विद्याधर का पुत्र अपना पितामह संबंधी बैर को याद करके वहाँ आया ओर पास में ही अर्जुन जाति के दो वृक्ष के अंतर में उसे लाने का प्रयत्न करने लगे। तब कृष्ण के रक्षक देवताओं ने उन अर्जुन के वृक्षों का तोड़ दिया। ऐसी बात सुनकर नंद यशोदा सहित वहाँ आये। उन्होंने धूल से धूसरित हुए कृष्ण के मस्तक पर चुंबन किया। उस वक्त उदर को दाम रस्सी से बांधा हुआ देखकर सभी गोप उनको दामोदर कहकर बुलाने लगे। गोपों और गोपांगनाओं को वे बहुत प्यारे प्राणवल्लभ होने से वे उनको रात दिन छाती पर गोद में और मस्तक पर रखने लगे।
(गा. 137 से 142) कृष्ण दही का मंथन करने की मथनी में से चपलता से मक्खन ले लेकर खा जाते थे, परंतु स्नेहार्द्र और कौतुक देखने के इच्छुक गोपाल उनको रोकते नहीं थे। किसी को मारते स्वेच्छा से फिरते और कुछ उठा ले जाते तो यशोदा पुत्र गांव वालों को आनंदित करते थे। उसको कोई कष्ट न आ जाए इसलिए कृष्ण जब दौड़ते तब गोपाले उनको पकड रखने के लिए पीछे दौड़ते थे, परंतु फिर भी वे रोक नहीं पाते थे। मात्र उनके स्नेह रूप गुण डोरी से आकर्षित होकर उनके पीछे जाते थे।
(गा. 143 से 145) समुद्रविजयादि दशाों ने भी सुना कि कृष्ण ने बालक होने पर भी शकुनि और पूतना को मार डाला गाडा तोड़ डाला और अर्जुन जाति के दोनों वृक्षों का उन्मूलन कर डाला। यह बात सुनकर वसुदेव सोचने लगे कि मैंने मेरे पुत्र को छुपाया है फिर भी वह अपने पराक्रम से प्रसिद्ध हो जाएगा और कंस भी उसे जान जायेगा इससे वह उसका अमंगल करने का प्रयास करेगा। यद्यपि वह भी वैसे करने में अब समर्थ होगा नहीं, पंरतु उस बालक की सहायता करने के लिए मैं एक पुत्र को भेजूं तो ठीक, परंतु यदि अक्रूर आदि में से किसी को भेजूंगा तो
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)