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चतुर्थ सर्ग
एक समय वसुदेव सो रहे थे वहाँ सूर्पक नाम के विद्याधर ने आकर उनका हरण कर लिया। तत्काल जागृत होने पर उन्होंने सूर्पक पर मुष्टि का प्रहार किया, जिससे सूर्पक ने उसे छोड़ दिया। तब वहाँ से छूटकर वसुदेव गोदावरी नदी में पड़ें। वहाँ वे तैरकर कोल्लापुर में आए, और वहाँ के राजा पदमरथ की पुत्री पदमश्री से विवाह किया। वहाँ से उनका नीलकंठ विद्याधर ने हरण किया। मार्ग में पुनः उन्हें छोड़ दिया तब वे चंपापुरी के पास सरोवर में गिरे। उसे भी तैरकर नगर में आकर मंत्री की पुत्री से विवाह किया । वहाँ भी सूर्पक विद्याधर ने पुनः उनका अपहरण किया और मार्ग में गिरा दिया। तब वे गंगा नदी के जल में गिरे। उस नदी को तैर कर मुसाफिरों के साथ चलते हुए एक पल्ली में आए। वहाँ पल्ल्पिति की जरा नाम की कन्या से विवाह किया। उससे जराकुमार नामक पुत्र हुआ वहाँ से निकल कर अंवतिसुंदरी, सूरसेना, नरद्वेशी, जीवयशा और अन्य भी राजकन्याओं से विवाह किया।
(गा. 1 से 6 )
एक बार वसुदेव अन्यत्र जा रहे थे। इतने में किसी देवता ने आकर उनको कहा कि हे वसुदेव। रूधिर राजा की कन्या रोहिणी के स्वयंवर में पहुँचा देता हूँ । वहाँ जाकर तुम पटह ढोल बजाना । तब वसुदेव अरिष्टपुर में रोहिणी के स्वयंवर मंडप में गये। वहाँ जरासंध आदि राजा भी आकर बैठे थे। उस समय मानो साक्षात चंद्र की स्त्री रोहिणी पृथ्वी पर आई हो । ऐसी रोहिणी कुमारी मंडप में आई। उस समय स्वंय रूचिकर हो जाय ऐसी इच्छा से सर्व राजा विविध प्रकार की चेष्टाएं रोहिणी की तरफ करने लगे । परंतु उनमें से कोई भी अपने अनुरूप न लगने से उसे कोई भी राजा अच्छा नहीं लगा ।
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व )
(गा. 7 से 9 )
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