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भवांतर में इसका वध करने वाला होऊँ, ऐसा नियाणा करके अनशन करके मृत्यु हुई। वहाँ से वह उग्रसेन की स्त्री धारिणी के उदर में उत्पन्न हुआ। उसके अनुभव से किसी दिन रानी को पति का मांस खाने का दोहद उत्पन्न हुआ। दोहद पूर्ण न होने की वजह से रानी दिन पर दिन दुर्बल होने लगी।
(गा. 52 से 63) कहने में लज्जा आने पर बहु कष्ट पूर्वक एक दिन रानी ने वह दोहद अपने पति को बताया। कुछ दिन पश्चात मंत्रियों ने राजा को अंधकार में रखकर उसके उदर पर खरगोश का मांस रखकर उसमें से काट काट कर रानी को देने लगे। जब उसका दोहद पूर्ण हुआ तब वह अपनी मूल प्रकृति में आ गई। तब वह बोली कि अब पति के बिना यह गर्भ और जीवन भी किस काम का? अंत में जब वह पति के बिना मरने को तैयार हो गई तब मंत्रियों ने उसे कहा कि- हे देवी! आप मरो मत। हम अपने स्वामी को सात दिन के अंदर संजीवन कर दिखायेंगे इस प्रकार कहकर स्वस्थ हुई रानी को मंत्रियों ने सातवें दिन उग्रसेन राजा को बताया। इससे रानी ने एक बड़ा उत्सव किया। पोष महिने की कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को चंद्र का मूल नक्षत्र में आने पर भद्रा में देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया। प्रथम ही भंयकर दोहद से भयभीत रानी ने पहले से तैयार करवाई हुई एक कासे की पेटी में जन्म होते ही उस बालक को उसमें रख दिया। उस पेटी में राजा और अपने नाम से अंकित दो मुद्रिका तथा पत्रिका डालकर रत्न भरकर उसने दासी के द्वारा वह पेटी यमुना नदी के जल में प्रवाहित कर दी और पुत्र की जन्मते ही मृत्यु हो गई ऐसा रानी ने राजा को कह दिया।
(गा. 64 से 70) यमुना नदी उस पेटी को बहाती बहाती शौर्यपुर के द्वार पर ले गई। सुभद्र नाम का रस कारस वणिक घी आदि रस पदार्थों का व्यापारी प्रातःकाल शौचादि से निवृत होने के लिए नदी पर आया था, उसने उस काँसे की पेटी को आते हुए देखा। उसने उसे खींचकर जल से बाहर निकाल लिया। उस पेटी को खोलते ही उसमें पत्रिका और दो रत्नमुद्रा सहित बालचंद्र जैसा एक सुंदर बालक देखकर उसे अत्यंत विस्मय हुआ। वह वणिक उस पेटी आदि के साथ उस बालक को अपने घर ले आया, और हर्ष से अपनी इंदु नाम की पत्नी को पुत्र रूप से अपर्ण किया। दोनों दंपति ने उसका कंस नाम रखा और मधु क्षीर तथा घृत
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)