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करना और यदि आपको कुछ वरदान मांगना हो तो वह भी मांग लो। देवी के इस प्रकार के वचन से वसुदेव बोले कि जब मैं याद करूँ तब तुम आना। देवी ने यह बात स्वीकार कर ली। वह देवी वसुदेव को बंधुमती के घर छोड़कर अंतर्ध्यान हो गई। प्रातः वसुदेव उस द्वारपाल के साथ प्रियंगमंजरी के निर्दिष्ट स्थान पर गए। वहाँ पहले से ही आई हुई थी। वसुदेव ने बहुत ही हर्ष के साथ गांधर्व विवाह किया। अठाहरवें दिन द्वारपाल ने प्रियगुमंजरी को दिए हुए वरदान की बात राजा को बताई, राजा उसे अपने घर ले गया।
(गा. 545 से 559) ___ इसी समय वैताळ्यगिरी पर गंधसमृद्ध नाम के नगर में गंधार पिंगल नाम के राजा थे। उनके प्रभावती नाम की कन्या थी। वह घूमती-घूमती सुवर्णाम नगर में आई। वहाँ उसने सोमश्री को देखा और वह उसकी सखी बन गई। सोमश्री को पति का विरह हुआ जानकर प्रभावती बोली हे सखि! तू किस लिए संताप कर रही है ? मैं अभी तेरे भर्तार को ला दूंगी। सोमश्री निःश्वास डालती हुई बोली, हे सखि! जिस प्रकार वेगवती पति को लाई थी वैसे तू भी रूप में कामदेव जैसे मेरे स्वामी को ला देगी। प्रभावती बोली- मैं वेगवती जैसी नही हूँ, ऐसा कहकर वह श्रावस्तवी नगर में गई और वहाँ से वसुदेव को ले आई। वहाँ वसुदेव दूसरा रूप करके सोमश्री के साथ रहे। किसी समय मानसवेग ने वसुदेव को पहचान लिया और उनको बांध लिया। उस समय कोलाहल होने से वृद्ध खेचरों ने आकर उनको छुड़ाया। वसुदेव ने मानसवेग के साथ सोमश्री संबंधी विवाह करने लगा। उसका निर्णय करने के लिए वे दोनों वैजयंती नगरी में बलसिंह राजा के पास आये। वहाँ सूर्पक आदि सभी एकत्रित हुए। मानसवेग ने कहा कि, पहले यह सोमश्री मेरी कल्प में थी उससे वसुदेव ने छल से विवाह कर लिया है। साथ ही मेरे दिये बिना मेरी बहन वेगवती से भी विवाह किया है। वसुदेव ने कहा- उसके पिता ने मुझे ही सोमश्री का उपयुक्त वर सोचा था अतः मैंने विवाह कर लिया। वहाँ से तुमने सोमश्री का हरण कर लिया। इस विषय में वेगवती के कहने से सभी लोग जानते हैं। इस प्रकार वाद विाद में वसुदेव ने मानसवेग को जीत लिया। वह युद्ध करने में तत्पर हुआ। उसके साथ नीलकंठ अंगारक सूर्पक आदि भी तैयार हुए। उस समय वेगवती की माता अंगारवती ने वसुदेव को दिव्यधनुष और दो तुणीर दिए और प्रभावती ने प्रज्ञप्ति विद्या दी।
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)