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वह भृगुकच्छ नगर का अधिपति है, उन पर इच्छा होती है ? हे पतिंवश ! ये भरतकुल में मुकुट तुल्य मानव र्धन राजा है इन विश्वविख्यात राजा को पति के रूप में पसंद करो। ये कुसुमायुध का पुत्र मुकुटेश्वर है चंद्र को रोहिणी की भांति तू इनकी पत्नि होने योग्य है। ये ऋषभ स्वामी के कुल में हुए कौशल देश के राजा निषध है, जो शत्रुओं का निषेध करने वाले एवं प्रख्यात है । यह उनका बलवान कुमार नल नाम का है अथवा उनका अनुज बंधु यह कुबेर है वह तुम्हारे अभिमत होओ। उस समय कृष्ण को लक्ष्मी के सदृश तत्काल दवदंती ने नल के कंठ में स्वंयवर की माला आरोपित कर दी। उस समय अहो! दवदंती ने योग्य वर का वरण किया, योग्य वर का वरण किया इस प्रकार आकाश में खेचरों की वाणी प्रकट हुई।
(गा. 336 से 349)
इतने में मानो धूमकेतु हो ऐसा कृष्ण राजकुमार खड़ग खींचकर तत्काल खड़ा हो गया और उसने इस प्रकार नल पर आक्षेप किया, अरे मूढ ! इस दवदंती ने तेरे गले में स्वयंवर माला वृथा ही डाली है, क्योंकि मेरे होने पर दूसरा कोई भी तुझसे विवाह करने में समर्थ नहीं है । इसलिए तू इस भीमराज की कन्या को छोड़ दे अथवा हथियार लेकर सामने आ, इस कृष्ण राज को जीते बिना तू किस तरह कृतार्थ होगा? ऐसे उसके वचन सुनकर नल हंसता हुआ बोला – अरे अधम क्षत्रिय । तुझे दवदंती ने वरण नहीं किया, अतः तू क्यों फालतु में दुखी होता है ? दवदंती ने मुझको वरा है इसलिए वह तेरी तो परस्त्री हुई, इस पर भी तू इसकी अनाधिकारिक इच्छा करता है तो अब तू जिंदा रहने वाला नहीं है । इस प्रकार कहकर अग्नि जैसा असहय तेजवाला, साथ ही क्रोध से अधरों को कंपित करता हुआ नल खडग का हस्त साधता करके उसे नचाने लगा। तब नल और कृष्ण राज दोनों का सैन्य मर्म भेदी आयुध ले लेकर युद्धार्थ तैयार हो गया । उस समय दवदंती विचारने लगी कि अरे! मुझे धिक्कार है, कि मेरे लिए ही यह प्रलयकाल हो गया । अरे क्या मैं क्षीण पुण्यवाली हूँ? हे माता शासन देवी! यदि मैं वास्तव में अरिहंत परमात्मा की भक्त होउँ, तो इन दोनों सैन्य का क्षेमकुशल होना और नल राजा का विजय होना चाहिए। ऐसा कहकर उसने पानी की झारी से पानी लेकर उस जल की तीन अंजलि भर के अनर्थ की शांति के लिए दोनों ही सैन्य पर छिड़का। उसमें से कुछ छींटे कृष्ण राज के मस्तक पर भी पड़े। उन छीटों के
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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